प्रेम जनमेजय साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 2

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मेरे व्यंग्य लेखन की राह बदलने वाले

उस उम्र में ‘आयुबाध्य' प्रेम के साथ-साथ मुबईया फिल्मों का प्रेम भी संग-संग पींग बढ़ाता था। पता नहीं कि फिल्मों के कारण मन में प्रेम का अंकुर फूटता था या मन में प्रेम के फूटे अंकुर के कारण हिंदी फिल्मों के प्रति एकतरफा प्रेम जागता था। या दोनो तरफ की आग बराबर होती थी। पर कुछ भी हो फिल्मो ने ब...

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कबीरा क्यों खड़ा बाजार

संपादक ने फोन पर कहा- कबीरा खड़ा बाजार में।
मैने पूछा – मॉस्क के साथ या बिना मॉस्क के?
संपादक कबीरी शैली में बोला-कबीर ने तो दूसरों के मास्क उतारे हैं, वो क्यों मॉस्क लगाए?
मैं भी कबीरी शैली में बोला-
डाकू मंत्री दोउ खड़े संसद में मुस्काएं।
बलिहारी संत्री आपनो जिन कबीरा चालान काटवाए।
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प्रेम जनमेजय का जीवन परिचय