रामायण के पन्नों मेंरावण को देख कर,काँप उठा मेरा मनअपने अंतर में झाँक कर।
हमारे मन के सिंहासन परभी बैठा हैएक रावण! छिपकर।ईर्ष्या, द्वेष और जलन काआभूषण पहन कर।
बाहर भूसुर! अंदर असुर!सीता हरण को बैठा है यह चतुर ।आज नहीं बचेगी! तब भी नहीं बची लक्ष्मण रेखा! तो कब की मिट चुकी।
रेखा आज भी कुछ अंशों ...
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