यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है मगर दर्द कितना समाया हुआ है मेरा दुख सुना चुप रहे फिर वो बोले
फिर तेरी याद जो कहीं आई नींद आने को थी नहीं आई मैंने देखा विपत्ति का अनुराग
तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो । कह सकते थे तुम सब कड़वी, मीठी, तीखी ।
चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
भटकता हूँ दर-दर कहाँ अपना घर है इधर भी, सुना है कि उनकी नज़र है उन्होंने मुझे देख के सुख जो पूछा
यह चिंता है वह चिंता है जी को चैन कहाँ मिलता है फूल आनंद का बहुत खोजा,
बिस्तरा है न चारपाई है जिंदगी ख़ूब हम ने पाई है कल अंधेरे में जिस ने सर काटा,
दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या अपना ही सा उन का मन है यह कभी माना है क्या जिन की हम ने याद की जिन के लिए बैठे रहे
स्वर के सागर की बस लहर ली है और अनुभूति को वाणी दी है मुझ से तू गीत माँगता है क्यों
चुप क्यों न रहूँ हाल सुनाऊँ कहाँ कहाँ जा जा के चोट अपनी दिखाऊँ कहाँ कहाँ जो देखा है अच्छा हो उसे दिल भी न जाने
मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है कहीं तिनके का भी सहारा नहीं है जो मोजों को देखा तो जी हो न माना