मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल

रचनाकार: त्रिलोचन

मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है
कहीं तिनके का भी सहारा नहीं है

जो मोजों को देखा तो जी हो न माना
यह मालूम था यह किनारा नहीं है

जिसे देख के लोग पलकें बिछा दें
कहेगा उसे कौन प्यारा नहीं है

करें हम वही, आप जो चाहते हैं
मगर किस तरह, कोई चारा नही है

कहाँ प्रेम सब को दिखाई दिया है
नदी फल्गु है जिस में धारा नही है

जो पतझर के पत्ते सा उड़ता रहा है
कहे कौन क़िस्मत का मारा नहीं है

यह आकाश है जिस में तारे ही तारे
मगर इसमें मेरा वह तारा नहीं है

लावण्य आंखों में आता रहा है
हुआ अजल यों ही खारा नहीं है

किसी का धरा पर हुआ वह न होगा
त्रिलोचन यहाँ जो तुम्हारा नहीं है

-त्रिलोचन