क्यों दीन-नाथ मुझपै, तुम्हारी दया नहीं ।
आश्रित तेरा नहीं हूं कि तेरी प्रजा नहीं ।।
मेरे तो नाथ कोई तुम्हारे सिवा नहीं ।
माता नहीं है बन्धु नहीं है पिता नहीं ।।
माना कि मेरे पाप बहुत है पै हे प्रभू ।
कुछ उनसे न्यूनतर तो तुम्हारी दया नहीं।।
करुणा करोगे क्या मेरे आँसू ही देखकर ।
जी का भी मेरे दुःख तो तुमसे छिपा नहीं ।।
तुम भी शरण न दोगे तो जाऊंगा मैं कहां ।
अच्छा हूं या बुरा हूं किसी और का नहीं ।।
- अज्ञात