जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

वसुधा की जीवन रेखा (कथा-कहानी)

Print this

Author: गीता चौबे गूँज

"अरे! सुना तुमने? वसुधा वेंटिलेटर पर है।"--मंगल के मुख से यह सुनकर शनि हतप्रभ था।

पूरे सौर-मंडल में हड़कंप मचा हुआ था। सभी ग्रह चिंतित थे कि वसुधा की जीवन-लीला समाप्त हो गयी तो उसके बच्चों का क्या होगा? सभी बेमौत मारे जाएँगे।

शुक्र जो स्वभाव से ही गरम-मिज़ाज था, गुस्से से लाल होता हुआ बरस पड़ा, "उसके बच्चों ने ही तो उसकी यह हालत कर डाली है। अब भुगतें! अच्छा हुआ कि हम जीवनरहित हैं वरना हमारा भी वही हाल होता जो आज वसुधा का है।"

"अरे! ऐसा न कहो। हमारे सौर-मंडल में एक वसुधा ही तो है, जो इतनी ख़ूबसूरत है। जहाँ पर जीवन है, हरियाली है। जल है, वायु है, ख़ुशियाँ हैं। हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह जल्दी से ठीक हो जाए।"--जुपिटर भी इस ऑनलाइन कॉंफ्रेंस में शामिल हो गया था।

तभी सभी के मोबाइल पर एक मेसेज फ्लैश हुआ--

वृक्षों से बनी दवाइयाँ और ऑक्सीजन चढ़ाने से वसुधा की जीवन-रेखा की वक्रता रफ़्तार पकड़ने लगी है…

"थैंक गॉड! अब पृथ्वी पर जंगलों की अनिवार्यता मनुष्यों को समझ आ गयी होगी।" सूर्य ने भी चैन की साँस ली।

- गीता चौबे 'गूँज'

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश