जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

क्यों निस दिन... | हिंदी ग़ज़ल (काव्य)

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Author: अलताफ़ मशहदी

क्यों निस दिन आँख बरसती है,
नागिन सी मन को डसती है !

मन हौले हौले रोता है,
जब दुनिया मुझ पर हँसती है !

बसते हैं आँखों में आँसू,
मन आशाओं की बस्ती है !

जाँ देकर उनकी याद मिली,
इन दामों कितनी सस्ती है !

पी छिपकर बैठे हैं मन में,
दर्शन को आँख तरसती है !

दुनिया अलताफ़ जवानी है,
फुलवारी धन कर हँसती हैं !

-अलताफ़ मशहदी

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