देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

राम की जल समाधि (काव्य)

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Author: भारत भूषण

पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता

किसलिए रहे अब ये शरीर, ये अनाथमन किसलिए रहे,
धरती को मैं किसलिए सहूं, धरती मुझको किसलिए सहे
तू कहां खो गई वैदेही, वैदेही तू खो गई कहां,
मुरझे राजीव नयन बोले, काँपी सरयू, सरयू कांपी,
देवत्व हुआ लो पूर्णकाम, नीली माटी निष्काम हुई,
इस स्नेहहीन देह के लिए, अब सांस-सांस संग्राम हुई

ये राजमुकुट, ये सिंहासन, ये दिग्विजयी वैभव अपार,
ये प्रियाहीन जीवन मेरा, सामने नदी की अगम धार,
माँग रे भिखारी, लोक माँग, कुछ और माँग अंतिम बेला,
इन अंचलहीन आँसुओं में नहला बूढ़ी मर्यादाएँ,
आदर्शों के जल महल बना, फिर राम मिलें न मिलें तुझको,
फिर ऐसी शाम ढले न ढले

ओ खंडित प्रणयबंध मेरे, किस ठौर कहां तुझको जोडूं,
कब तक पहनूँ ये मौन धैर्य, बोलूँ भी तो किससे बोलूँ,
सिमटे अब ये लीला सिमटे, भीतर-भीतर गूंजा भर था,
छप से पानी में पाँव पड़ा, कमलों से लिपट गई सरयू,
फिर लहरों पर वाटिका खिली, रतिमुख सखियाँ, नतमुख सीता,
सम्मोहित मेघबरन तड़पे, पानी घुटनों-घुटनों आया,
आया घुटनों-घुटनों पानी फिर धुआं-धुआं फिर अँधियारा,
लहरों-लहरों, धारा-धारा, व्याकुलता फिर पारा-पारा

फिर एक हिरन-सी किरन देह, दौड़ती चली आगे-आगे,
आँखों में जैसे बान सधा, दो पाँव उड़े जल में आगे,
पानी लो नाभि-नाभि आया, आया लो नाभि-नाभि पानी,
जल में तम, तम में जल बहता, ठहरो बस और नहीं कहता,
जल में कोई जीवित दहता, फिर एक तपस्विनी शांत सौम्य,
धक धक लपटों में निर्विकार, सशरीर सत्य-सी सम्मुख थी,
उन्माद नीर चीरने लगा, पानी छाती-छाती आया,
आया छाती-छाती पानी

आगे लहरें बाहर लहरें, आगे जल था, पीछे जल था,
केवल जल था, वक्षस्थल था, वक्षस्थल तक केवल जल था
जल पर तिरता था नीलकमल, बिखरा-बिखरा सा नीलकमल,
कुछ और-और सा नीलकमल, फिर फूटा जैसे ज्योति प्रहर,
धरती से नभ तक जगर-मगर, दो टुकड़े धनुष पड़ा नीचे,
जैसे सूरज के हस्ताक्षर, बांहों के चंदन घेरे से,
दीपित जयमाल उठी ऊपर,

सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,
केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,
हे राम-राम, हे राम-राम
हे राम-राम, हे राम-राम

-भारत भूषण

[मेरे चुनिंदा गीत : भारत भूषण, 2008]

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