देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
हमको सपने टूटने का ग़म नहीं | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

हमको सपने टूटने का ग़म नहीं
अपने ही वादों में था कोई दम नहीं!

माना तुम भी ज़िंदगी से खुश नहीं
गम मेरे हिस्से में भी कुछ कम नहीं!

दुनिया कांटे लाख रख मेरी राहों में
पाँव सकते मेरे बढ़ते थम नहीं!

दिल से रोया होगा उनको याद कर
आँख थी 'रोहित' की बिल्कुल नम नहीं!

          - रोहित कुमार 'हैप्पी'

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