मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं मैं जहाँ रहता था अब वो, घर नहीं बस्ती नहीं
सबके माथे पर शिकन, सबपर उदासी छाई है अब किसी चेहरे पे दिखता, नूर औ’ मस्ती नहीं।
ना कोई अपना बना, हम भी किसी के कब बने इस जगह में जैसे अपनी, कुछ भी तो हस्ती नहीं
तुझसा जो भी हो गया, बस भीड़ में ही खो गया शख्सियत ‘रोहित’ हमारी इतनी भी सस्ती नहीं।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
|