हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। - शंकरराव कप्पीकेरी

कथा-कहानी

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अभिभावक  - वाचस्पति पाठक

अभिभावक - वाचस्पति पाठक की कहानी

अपरिचित देश के इस नवीन वासस्थान में शरद् ऋतु का मध्यान्ह; मेरे हृदय के अनिश्चित विषाद सा शून्य था। जिसे संसार में कोई काम नहीं––वह कैसे जीता है?–– विषयशून्य हृदय में यह अचिन्तनीय चिन्ता व्याप्त हुई––अजगर भी जीव है, बेचारा विशालकाय शरीर का स्वामी! तमाच्छादित गहन गिरिसंकुल में उसका निस्पृह निरवलम्ब जीवन कितना वेदनापूर्ण होगा?––करुणार्द्र–हृदय व्याकुल हो उठा। 

 
इतिहास का वर्तमान - अभिमन्यु अनत

एक बार जब बोनोम नोनोन अपने मित्र बिसेसर के साथ अपनी कुटिया के सामने ढपली बजाता हुआ जोर-जोर से गाने और नाचने लगा था तो मेस्ये गिस्ताव रोवियार उस तक पहुँच आया था। उस शाम पहले ही से बोतल खाली किए बैठे नोनोन ने जगेसर से चिलम लेकर गाँजे के दो लंबे कश भी ले लिए थे। उस ऊँचे स्वर के गाने के कारण मेस्ये रोवियार ने नोनोन को डाँटते हुए कहा था। कि वह जंगलियों की तरह शोर मत करे। रोवियार की नजर बिसेसर पर नहीं पड़ी थी, क्योंकि अपने पुराने मालिक के बेटे को दूर ही से ढलान पार करते बिसेसर ने देख लिया था। बिसेसर का घर नदी के उस पार था, जो इस इलाके में नहीं आता था। इस इलाके में बिसेसर का आना मना था; पर अपने मित्र नोनोन से मिलने वह कभी-कभार आ ही जाता था। शक्कर कोठी के छोटे मालिक गिस्ताव का आलीशन मकान, जिसे बस्ती के लोग 'शातो' कहते थे, वास्तव में एक महल ही तो था। नोनोन की झोंपड़ी से ऊपर जहाँ पहाड़ी दूर तक समतल थी और जहाँ यह महल स्थित था, वह स्थान तीन ओर से हरे-भरे मनमोहक पेड़ों से घिरा हुआ था।

 
अपने-अपने आग्रह  - बलराम अग्रवाल

"तुझे मेरा नाम मालूम नहीं है क्या?" वह उस पर चीखा। 

 
मैं सम्पादक - रामशरण शर्मा

मैं--सम्पादक!

 
गुरुमाता का आशीर्वाद | प्रसंग - स्वामी विवेकानंद

पश्चिम के लिए निकलने से पहले स्वामी विवेकानंद अपनी गुरुमाता (स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) शारदा देवी का आशीर्वाद लेने गए।

 
धरती की उत्पत्ति | लोक कथा - रोहित कुमार ‘हैप्पी'

धरती की उत्पत्ति

 
लोहे की जालियाँ | कहानी - राम नगीना मौर्य

लोहे की जालियां

 
वृक्षगंधा | कहानी - रजनी शर्मा बस्तरिया

गायों के रंभाने की आवाज आने लगी। दूर  से धूल की उड़ती गुबार ने गोधूली बेला का शंखनाद कर ही दिया। गायों के गले में बंधे लकड़ी के डिब्बे में लगी घंटी मानो उनके कदमों से जुगलबंदी कर रही हो। 

 
सब कुछ जायज़ है | कहानी  - सन्दीप  तोमर 

अंडमान के हैवलॉक द्वीप के समुन्द्र तट के पास लंबे ऊंचे पेड़ के नजदीक बने एयर रेस्टोरेंट की ये एक हसीन शाम थी। यह रेस्टोरेंट इतना गोल था कि लगता था मानो खुद प्रकृति ने चाँद को धरातल पर रख गोला खींच दिया हो। नीचे के तल पर रसोई और वॉशरूम थे। उसके ऊपर के तल पर यह चारो तरफ से खुला रेस्टोरेन्ट था। लकड़ी की सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाया जा सकता था। ऊपर कुर्सी मेज से लेकर हर एक वस्तु लकड़ी की बनी थी। कुर्सियाँ भी एकदम अलग अंदाज की थी, समुन्द्र की लहरों से छनकर आती हवा माहौल की खुशनुमा बनाती थी। रेस्टोरेंट में खाने वालों के मन को हर्षित करने के लिए संगीत गुंजायमान था। संगीत यंत्र के पास एक लड़का हाथ में माइक लिए था, वह कभी किशोर के गाने गाता तो कभी रफी बनने की कोशिश करता। उसकी आवाज में एक कसक थी। प्रभाकर ने अपनी क्रिसेंट की घड़ी में देखा अभी 2 बजे का वक्त था, रूपल को इस वक़्त तक आ जाना चाहिए था। प्रभाकर को आदत है वक़्त से पहले पहुँचने की, शायद इंतज़ार करना अच्छा लगता है, यद्यपि उसने कभी किसी को इंतजार कराया हो ऐसा उसे याद नहीं पड़ता।

 
उसकी ज़रूरत | लघुकथा - डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी

उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही परिलक्षित हो रहा था। वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है।“

 
इस पार न सही | लघुकथा - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा 

"आज फिर वहाँ क्या कर रहे थे?"

 
भाई | लघुकथा - अरिमर्दन कुमार सिंह

सुबह-सुबह लीला जब जॉगिंग करके घर में दाखिल हुई तो उसने पति लीलेश को फोन पर बात करते हुए देखा। पति के फोन काटते ही लीला ने बातचीत का सार तत्व समझ व्यंग्य बाण छोड़ा, "लगता है कि तुम्हारे भाई भरत का फोन था? फिर पैसे की मांग की गई है न?"

 
गिरहकट - दिलीप कुमार

गिरहकट : दिलीप कुमार की लघुकथा 

पन्ना, मैक, लंबू, हीरा, छोटू इनके असली नाम नहीं थे लेकिन दुनिया अब इसे ही इनका असली नाम मानती थी।

 

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