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कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां।Article Under This Catagory
भेड़िये - भुवनेश्वर |
‘भेड़िया क्या है’, खारू बंजारे ने कहा, ‘मैं अकेला पनेठी से एक भेड़िया मार सकता हूँ।’ मैंने उसका विश्वास कर लिया। खारू किसी चीज से नहीं डर सकता और हालाँकि 70 के आस-पास होने और एक उम्र की गरीबी के सबब से वह बुझा-बुझा सा दिखाई पड़ता था; पर तब भी उसकी ऐसी बातों का उसके कहने के साथ ही यकीन करना पड़ता था। उसका असली नाम शायद इफ्तखार या ऐसा ही कुछ था; पर उसका लघुकरण ‘खारू’ बिलकुल चस्पाँ होता था। उसके चारों ओर ऐसी ही दुरूह और दुर्भेद्य कठिनता थी। उसकी आँखें ठंडी और जमी हुई थीं और घनी सफेद मूँछों के नीचे उसका मुँह इतना ही अमानुषीय और निर्दय था जितना एक चूहेदान। |
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नशा - मन्नू भण्डारी |
"सत्यानाश हो उस हरामी के पिल्ले का, जिसने ऐसी जान लेवा चीज बनाई!" ...खाली बोतल को हिला हिलाकर शंकर इस तरह जोर-जोर से चिल्ला रहा था, जिससे कि रसोई में काम करती हुई उसकी पत्नी सुन ले। "घर का घर तबाह हो जाए, आदमी की जिन्दगी तबाह हो जाये; पर यह जालिम तरस नहीं खाती! कैसा मूर्ख होता है आदमी भी, यह समझता है वह इसे पी रहा है; पर असल में यह आदमी को पीती है, आदमी की जान को, आदमी के खून को पीती है उसके ईमान को पीती है, हाँ-हाँ!" यों ही बकता-बहकता, खाली बोतल की मुग्दर घुमाता हुआ शंकर रसोई के दरवाजे पर पहुँच गया, "देखा, यह खाली हो गई?" और बोतल को उलटी करते हुए बोला, "एक दम खाली! अब मैं चाहता हूँ कि मैं इसे भरूँ और पिऊँ और यह कम्बख्त चाहती है कि यह मेरे पेट में भर जाये और मुझे पिये! ...पियें... दोनों खूब पियें!" |
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ठंडक - महीप सिंह |
जैसे से ही उस विशाल भवन का कुछ भाग दिखाई दिया, जीवन ने कहा, 'देखो, वह है...पूरा एयरकंडीशंड है।' फिर वह स्वयं ही संकुचित-सा हुआ, सत्या एयरकंडीशंड का मतलब क्या समझेगी। वह समझाने लगा, 'देखो, अभी कितनी गर्मी है। वहाँ पहुँचोगी, तो ऐसा लगेगा. जैसे किसी ठंडे पहाड़ पर आ गई हो।' परंतु वह फिर संकुचित हुआ, सत्या ठंडा पहाड़ भी क्या समझेगी। क्या वह कभी वहां गई है? और वह खुद भी कहां गया है। उसने भी तो केवल सुना ही है कि पहाड़ ठंडे होते हैं। अमीर लोग गर्मियों में पहाड़ पर चले जाते हैं। |
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दुःख - यशपाल | Yashpal |
जिसे मनुष्य सर्वापेक्षा अपना समझ भरोसा करता है, जब उसी से अपमान और तिरस्कार प्राप्त हो, मन वितृष्णा से भर जाता है; एकदम मर जाने की इच्छा होने लगती है; इसे शब्दों में बता सकना सम्भव नहीं। |
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बालकों का चोर - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय |
उन दिनों चारों ओर यह खबर फैल गई कि रूपनारायण-नद के ऊपर रेल का पुल बनेगा, परंतु पुल का काम रुका पड़ा है, इसका कारण यह है कि पुल की देवी तीन बच्चों की बलि चाहती है, बलिदान दिए बिना पुल नहीं बन सकता। तत्पश्चात् खबर फैली कि दो बच्चे पकड़कर जीवित ही पुल के खंभे के नीचे गाड़ दिए गए. हैं, अब केवल एक लड़के की खोज है, उसके मिल जाने पर पुल तैयार हो जाएगा। यह भी सुना गया कि रेलवे-कंपनी के आदमी लड़के की खोज में शहर तथा गाँवों में चक्कर लगा रहे हैं। कोई नहीं कह सकता कि वे कब कहाँ जा पहुँचेंगे, उन्हें पहचानना कठिन है, क्योंकि उनमें से कोई भिखारी के वेश में है, कोई साधु- संन्यासी का बाना धारण किए हुए है और कोई गुंडों-डकैतों की भाँति लाठी बाँधे घूम रहा है। यह अफवाह बहुत दिनों से फैली हुई थी, अत: आसपास के ग्राम-निवासी अत्यधिक भयभीत थे एवं संदेह का यह हाल था कि वे हर किसी को रेलवे-कंपनी का लड़का पकड़नेवाला आदमी ही समझ बैठते थे। प्रत्येक यही समझता था कि अबकी बार उसकी ही बारी है, संभवत: उसी का बच्चा पकड़कर पुल के नीचे गाड़ दिया जाएगा। |
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मिनी - अलका सिन्हा |
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हत्या - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
चौराहे पर चर्चा चल रही थी। पूर्णिमा-हत्याकांड के सभी आरोपी बरी हो गये लेकिन प्रश्न था कि जब पूर्व-आरोपियों ने उसे नहीं मारा, तो फिर मारा किसने? |
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धूर्त की प्रीति - आनंदकुमार |
एक नामी कंजूस था। लोग कहते थे कि वह स्वप्न में भी किसी को प्रीति-भोज का निमन्त्रण नहीं देता था। इस बदनामी को दूर करने के लिए एक दिन उसने बड़ा साहस करके एक सीधे-सादे सज्जन को अपने यहां खाने का न्योता दिया। सज्जन ने आनाकानी की। तब कंजूस ने कहा--आप यह न समझें कि मैं खिलाने-पिलाने में किसी तरह की कंजूसी करूंगा। मैं अपने पुरखों की कसम खाकर कहता हूं कि जो बढ़िया से बढ़िया चीज मिलेगी, वही आपके सामने रखूंगा। आप अवश्य पधारें धर्मावतार ! |
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अमर बेल की चोरी - प्रह्लाद रामशरण |
बहुत दिन हुए, बेबीलोनिया में एरीच नाम का एक नगर था। जीलगामेश वहां का राजा था। उसने नगर के चारों ओर एक बड़ी ऊंची दीवार खड़ी की थी और उसमें एक आलीशान मन्दिर भी बनवाया था। |
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दिशा - फ़्रेंज़ काफ़्का |
'बहुत दुख की बात है,' चूहे ने कहा, 'दुनिया दिन प्रतिदिन छोटी होती जा रही है। पहले यह इतनी बड़ी थी कि मुझे बहुत डर लगता था। मैं दौड़ता ही रहा था और जब आखिर में मुझे अपने दाएँ-बाएँ दीवारें दिखाई देने लगीं थीं तो मुझे खुशी हुई थी। पर यह लंबी दीवारें इतनी तेजी से एक दूसरे की तरफ बढ़ रही हैं कि मैं पलक झपकते ही आखिर छोर पर आ पहुँचा हूँ; जहाँ कोने में वह चूहेदानी रखी है और मैं उसकी ओर बढ़ता जा रहा हूँ।' |
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प्राइवेसी - कल्पना मनोरमा |
आवली के घर में गेस्टरूम की रिपेयरिंग का काम चल रहा था। रिश्तेदार आने की बात कहते तो मौरंग,गिट्टी और सीमेंट का पसारा पसरा है, बोल देती। एक दिन पति ने बताया—बड़ी दीदी का फोन आया था। वे आजकल में घर आना चाहती है। सुनते ही आवली भड़क पड़ी--"आपने क्या कहा?" |
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इन्साफ - भारत-दर्शन संकलन |
तीन आदमियों ने एक ही प्रकार का अपराध किया था किन्तु राजा विक्रमादित्य ने सभी को भिन्न दंड दिया अर्थात् एक को तो बुला कर इतना ही कहा कि तुम जैसे भले आदमी को ऐसा करना शोभा नहीं देता। दूसरे को बुला कर बुरा-भला कहा और कुछ झिड़का भी। तीसरे को काला मुँह कराकर गधे पर सवार कराया और पूरे नगर में फिराया। |
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बैकग्राउंड - कान्ता रॉय |
“ये कहाँ लेकर आए हो मुझे?” |
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