उग बबूल आया, चन्दन चला गया।
आते ही जवानी बचपन चला गया।।

सोचा था बहुत पानी बरसे इस दफ़ा
जेठ-सा जलाता सावन चला गया।।

सबको मिल गये घर यारो अलग अलग
पर हमारा प्यारा आँगन चला गया।।

भूख कितनों की मिटती देखो सोचकर
पत्तलों में कितना जूठन चला गया।।

घर, दरख्त़, आँगन निगले तरक्की ने
अब सड़क की ख़ातिर गुलशन चला गया।।

- संजय तन्हा
ग्राम-दयालपुर, बल्लबगढ़
फरीदाबाद (हरियाणा)
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