मां आनंदी पिता अजायब,
धरा लमही की है! तुम्हें प्रणाम
जिसने जना 'मजदूर कलम का'
दिव्य देह, वह धरा-धाम
धनपत राय श्रीवास्तव तुम थे
तुम्हीं अजायब सुत नवाब राय भी
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद भी तुम
थे साहित्य सिद्ध, जीवन अभिप्राय
सात वर्ष में तजा मातु ने
चौदह में तज पिता गए
जीवन संघर्षों ने वेध-वेध फिर
भाव शूल थे तीव्र किए
अभाव वही, फिर भाव पुष्प
बन रचना नव देते आयाम
हे लमही के संत तुम्हारी
वाणी-अभिव्यक्ति को शत-शत प्रणाम
'सोजे वतन' को किया नष्ट पर
थमा न लेखनी का सतत प्रवाह
रची कृतियां उत्तरोत्तर उत्तम
देह, वय चाहे हुई सब स्वाह
'सौत' कथा आधारशिला थी
दीर्घ कथा यात्रा मग की
उपन्यास-कथा संगिनी रही बन
तात! रचनात्मक तव पग की।।
कथा पितामह ! मां वाणी के वरदपुत्र
प्रेमचंद है तुम्हें प्रणाम
जीवित, विश्व क्षितिज पर तेरी
रचना, सिद्धि, जीवंत काम
शिवरानी के सखा-मीत तुम
उर्दू हिंदी के कथाकार श्रेष्ठ
घिस-घिस, सृजी साहित्य महानिधि
मां वाणी के तपी, ज्येष्ठ
'सेवासदन', 'प्रेमाश्रम', 'निर्मला' या फिर
'कायाकल्प', 'गबन', 'रंग' व 'कर्मभूमि' ही
'गोदान' सदृश दे उपन्यास विश्व के
रहें सदा बन अपूर्व धरोहर ही
कलम पुजारी हे लमही के
चली साधना वह अविराम
अक्षर-अक्षर अमर हुए तुम
भावर्षि प्रेमचंद! तुम्हें प्रणाम
अनुवादक, संपादक, स्रष्टा
रूप जगत में हैं कितने
रची साधना जहां मौन हो
हुए प्रकीर्णित तुम उतने
निज दारुण, दैन्य संघर्ष जगत के
बने पीठिका सृजन-कर्म के
अमर कथाशिल्पी बन तुमने
चित्र उकेरे मूल-मर्म के
तात! कलम का इक-इक अक्षर
है हिंदी निधि, तुम्हें सलाम
युग प्रवर्तक! श्रम, लेखन उत्तम
भावर्षि प्रेमचंद तुम्हें प्रणाम॥
- डॉ दिनेश चमोला 'शैलेश'
[ गगनांचल सितंबर-अक्तूबर 2014 ]
*डॉ. दिनेश चमोला 'शैलेश' की विभिन्न विषयों पर 75 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्रिकाओं में लेखों का प्रकाशन।