पुस्तक का नाम : भारत मुझमें बसता है
लेखिका : आराधना झा श्रीवास्तव
प्रकाशक : ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष : 2025
मूल्य : ₹500
ISBN : 978-93-92013-55-3
आराधना झा श्रीवास्तव की काव्य-पुस्तक भारत मुझमें बसता है एक प्रवासी भारतीय की आत्मा में रचे-बसे भारत की गूंज है। यह संग्रह उन भावनाओं का सजीव चित्रण करता है जो विदेश में रहते हुए भी भारत की मिट्टी, संस्कृति और स्मृतियों से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
आराधना एक दशक से भी अधिक समय से सिंगापुर निवासी हैं। हिंदी टेलीविजन पत्रकारिता की अनुभवी हैं। वैश्विक हिंदी जगत में परिचित नाम हैं।
आराधना लिखती हैं--'भारत मुझमें बसता है', निजता से सामूहिकता का विस्तार लिये भावों की अभिव्यक्ति है। ये भाव जब भाषिक ढाँचे में ढलकर कागज पर उतरते हैं तो सामूहिक संवेदना का स्वर बन जाते हैं। कविता एक स्त्री की भाँति अपने गर्भ में सृजन का बीज लिये रहती है, जिसमें निहित होती हैं अनंत संभावनाएँ और असीम संवेदनाएँ। भारत केंद्रित प्रवासी- लेखन को गृहातुरता की श्रेणी में रखने वालों के लिए यह समझना आवश्यक है कि जिस माटी में हमने जन्म लिया और पोषित हुए, उस काया में पल रही संवेदनाओं की प्राथमिक और प्रमुख पृष्ठभूमि भारत का होना स्वाभाविक ही है।
रोजगार के प्रयोजन से महानगरों और देश की सीमाओं से सुदूर किसी विदेशी धरती पर प्रवास कर रही संतान अपने घर के आँगन की रस्सी पर मन की भीगी चादर को टँगा हुआ छोड़ आती है। माँ- बाबूजी की याद आते ही हम आँगन में रखी चारपाई पर उस चादर को बिछाकर लेट जाते हैं। उस समय हमारी आँखें भविष्य का स्वप्न नहीं देखतीं। उनमें चलायमान होते हैं स्मृतियों के चलचित्र, जहाँ हमारा अल्हड़ बचपन माँ के आँचल में लुकाछिपी का खेल खेलता खिलखिला रहा होता है। बाबूजी के कंधों पर चढ़कर भीड़ से अलग और ऊँचा दिखने की अकड़ में तनकर इतरा रहा होता है।
"मेरी धमनी में, मेरी नस-नस में,
गंगधार बन, जो बहता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ,
इक भारत मुझमें बसता है।"
विषयवस्तु और भावनात्मक गहराई
पुस्तक की कविताएँ एक प्रवासी के हृदय में बसे भारत की झलकियाँ प्रस्तुत करती हैं। कवयित्री ने अपने अनुभवों के माध्यम से यह दर्शाया है कि भौगोलिक दूरी के बावजूद, भारत की संस्कृति, त्योहार, और स्मृतियाँ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बनी हुई हैं।
लेखन शैली और भाषा
आराधना की लेखनी सरल, सहज और भावनाओं से परिपूर्ण है। उनकी कविताएँ पाठकों को सीधे हृदय से जोड़ती हैं। उन्होंने प्रवासी जीवन की जटिलताओं और भारत के प्रति अपने प्रेम को सुंदरता से अभिव्यक्त किया है।
प्रवासी अनुभव की अभिव्यक्ति
सिंगापुर निवासी आराधना ने अपने प्रवासी अनुभवों को कविताओं के माध्यम से जीवंत किया है। उनकी रचनाएँ दर्शाती हैं कि कैसे एक प्रवासी अपने देश की संस्कृति, भाषा और परंपराओं को अपने जीवन में संजोए रखता है। उनकी कविताएँ न केवल व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब हैं, बल्कि सामूहिक प्रवासी भावनाओं की भी अभिव्यक्ति हैं--
"मैं जहाँ जाऊँ, जहाँ भी रहूँ,
एक भारत मुझमें बसता है।"
काव्य-संग्रह की विशेषताएँ
"भारत मुझमें बसता है" एक भावपूर्ण और व्यापक काव्य-संग्रह है जिसमें 108 कविताएँ संकलित हैं। यह संग्रह 9 सुव्यवस्थित खंडों में विभाजित है, जिनके शीर्षक विषय की विविधता और गहराई का संकेत देते हैं:
- आस्था के स्वर
- चेतना, चिन्तन और समर्पण
- जननी जन्मभूमिश्च
- यह जो देश है मेरा
- हस्तक्षेप
- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
- प्रकृति से प्रीति
- भाषा, भाव और शब्द-साधना
- ढाई आखर प्रेम का
इन खंडों के माध्यम से कवयित्री ने भारतीय संस्कृति, सामाजिक चेतना, नारी-शक्ति, देशप्रेम, प्रकृति और प्रेम जैसे विषयों को संवेदनशीलता और सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। हर खंड का आरंभ एक कलात्मक श्वेत-श्याम चित्र से होता है।
लेखन शैली और कथ्य
आराधना झा की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और गहन भावनात्मक है। उनका दृष्टिकोण पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक चेतना से जोड़ता है। कहीं गहन आत्मचिंतन है, तो कहीं सामाजिक प्रश्नों पर सशक्त हस्तक्षेप। वे शब्दों के माध्यम से संवेदना और विचार की गहराई में प्रवेश करती हैं।
'यह जो देश है मेरा' खंड में भारत के प्रति उनका प्रेम भावनात्मक स्तर पर झलकता है, वहीं 'हस्तक्षेप' खंड में वे सामाजिक विसंगतियों और अन्याय पर तीखा दृष्टिकोण रखती हैं। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते' खंड नारी-विमर्श को सशक्त तरीके से प्रस्तुत करता है।
प्रवासी अनुभव और मातृभूमि से जुड़ाव
कविताओं में भारत का चित्र स्पष्ट रूप से उभरता है — उसका सौंदर्य, उसकी आत्मा, उसकी परंपराएँ और उसकी पीड़ा। शीर्षक 'भारत मुझमें बसता है' इस भावनात्मक निष्ठा की पुष्टि करता है।
अन्य उल्लेखनीय बिंदु
पुस्तक का प्रत्येक खंड एक विशिष्ट भावभूमि पर केंद्रित है। कविताओं की विविधता इसे एक समृद्ध संग्रह बनाती है। इसमें नारी की संवेदना, भाषा की गरिमा, और प्रकृति के प्रति आभार की झलक मिलती है। कवयित्री की दृष्टि सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी है, जो उन्हें एक संवेदनशील और उत्तरदायी रचनाकार बनाती है।
निष्कर्ष
"भारत मुझमें बसता है" केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक साहित्यिक यात्रा है — भावनाओं, विचारों, और संस्कारों की। यह उन पाठकों के लिए एक अनमोल संग्रह है, जो कविता में न केवल सौंदर्य ढूँढते हैं, बल्कि उससे जुड़ी चेतना, जड़ें और उत्तरदायित्व भी महसूस करना चाहते हैं।
'भारत मुझमें बसता है' एक ऐसा काव्य-संग्रह है जो हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है जो अपने देश से दूर रहकर भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को जीवित रखता है। आराधना झा श्रीवास्तव का काव्य-संग्रह न केवल प्रवासी भारतीयों के लिए, बल्कि उन सभी पाठकों के लिए महत्वपूर्ण है जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और भावनात्मक गहराई को समझना चाहते हैं।
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समीक्षक : रोहित कुमार हैप्पी
संपादक : भारत-दर्शन ऑनलाइन पत्रिका, न्यूज़ीलैंड
ई-मेल : editor@bharatdarshan.co.nz
*लेखक इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली हिंदी पत्रिका ‘भारत-दर्शन’ के संपादक हैं।