यह कैसे संभव हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा समस्त भारत की मातृभाषा के समान हो जाये? - चंद्रशेखर मिश्र।

आराधना झा श्रीवास्तव | Profile & Collections

संप्रति सिंगापुर में प्रवास कर रही आराधना झा श्रीवास्तव लेखन और स्वतंत्र पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं। बिहार के दरभंगा जिले में पैदा हुई और पली बढ़ी आराधना भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय समाचार चैनल स्टार न्यूज़ (संप्रति – एबीपी न्यूज़) में बतौर एसोसिएट प्रोड्यूसर के रुप में कार्यरत रहीं। सिंगापुर आने के बाद उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विट्जरलैंड से कार्यकारी शिक्षा प्राप्त करने के साथ सिंगापुर मैंनेजमेंट यूनिवर्सिटी से  कम्युनिकेशन मैंनेजेमेंट में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की।

सिंगापुर में हिंदी के प्रचार-प्रसार के कार्यों में आराधना का स्वैच्छिक योगदान सराहनीय है। 

आपकी लिखी हुई संवाद-नाटिकाएँ, आलेख, कविता और समीक्षा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। छह साझा काव्य-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं। आराधना अपने यूट्यूब चैनल, फ़ेसबुक पेज  'आराधना की अभिव्यक्ति' (Aradhana ki Abhivyakti) और ट्विटर खाते के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को दर्शकों से साझा करती हैं।

आराधना झा श्रीवास्तव's Collection

Total Records: 6

जीवन का राग

जीवन का ये जो राग हैनिर्मल है, ये बेदाग़ है,

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तलाश जारी है...

स्वदेस में बिहारी हूँ, परदेस में बाहरी हूँजाति, धर्म, परंपरा के बोझ तले दबी एक बेचारी हूँ।रंग-रूप,नैन-नक्श, बोल-चाल, रहन-सहनसब प्रभावित, कुछ भी मौलिक नहीं।एक आत्मा है, पर वह भौतिक नहीं।जो न था मेरा, जो न हो मेराफिर किस बहस में उलझें सबकि ये है मेरा और ये तेरा।जब तू कौन है ये नहीं जानता,खुद को ही नहीं पहचानता,कहां से आया और कहां चला जाएगासाथ कुछ भी नहीं, सब पीछे छूट जाएगा।जो छूट जाएगा, तेरे काम नहीं आएगाफिर वो क्या है जो तेरी पहचान है,जिसमें अटकी तेरी जान है।वह देह से परे, भावनाओं का एक जाल हैजिससे रहित तेरी काया एक कंकाल है।पर क्या तू कभी इनका मोल कर पायाटुकड़ों में बंटी अपनी पहचान को समेट पायातू कौन है ये अगर जान लेख़ुद को अगर पहचान लेतो एक मुलाकात मेरी भी करवानाक्योंकि…खुद को पहचानने कीमेरी तलाश अब भी जारी है…तलाश जारी है…

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गीता का सार

तू आप ही अपना शत्रु हैतू आप ही अपना मित्र,या रख जीवन काग़ज़ कोराया खींच कर्म से चित्र।

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माँ अमर होती है, माँ मरा नहीं करती

माँ अमर होती है, माँ मरा नहीं करती।माँ जीवित रखती हैपीढ़ी दर पीढ़ी परिवार, परंपरा, प्रेम औरपारस्परिकता के उस भाव कोजो समाज को गतिशील रखता हैउससे पहिए को खींच निकालता हैपरिस्थिति की दलदल से बाहर।

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आराधना झा श्रीवास्तव के हाइकु

वृत्त में क़ैदगोल गोल घूमतीधुरी सी माँ

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वो राम राम कहलाते हैं

अवधपुरी से जनकपुरी तकप्रेम की गंगा बहाते हैंवो राम राम कहलाते हैं।राम ही माला, राम ही मोतीमन मंदिर वही बनाते हैं।वो राम राम कहलाते हैं। ॥1॥

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