आराधना झा श्रीवास्तव साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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जीवन का राग

जीवन का ये जो राग हैनिर्मल है, ये बेदाग़ है,
तुम छेड़ो न इस राग कोमन के इसके बैराग को,
इसे भाव-भाष में तोलो नख़ामोश रहो कुछ बोलो न,
मत बाँधों शाब्दिक बंधन मेंबहने दो स्वर के स्पंदन में,
ये स्वर भी मुखर न हो जाएँमद्धम हों प्रखर न हो जाएँ,
जो बजे नहीं फिर भी सुन लूँनादों का ऐसा मैं गुण लूँ,
स...

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तलाश जारी है...

स्वदेस में बिहारी हूँ, परदेस में बाहरी हूँजाति, धर्म, परंपरा के बोझ तले दबी एक बेचारी हूँ।रंग-रूप,नैन-नक्श, बोल-चाल, रहन-सहनसब प्रभावित, कुछ भी मौलिक नहीं।एक आत्मा है, पर वह भौतिक नहीं।जो न था मेरा, जो न हो मेराफिर किस बहस में उलझें सबकि ये है मेरा और ये तेरा।जब तू कौन है ये नहीं जानता,खुद को ही ...

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गीता का सार

तू आप ही अपना शत्रु हैतू आप ही अपना मित्र,या रख जीवन काग़ज़ कोराया खींच कर्म से चित्र।
तू मन में अब ये ठान ले,है कर्म ही धर्म ये जान ले।भ्रम का अपने संज्ञान ले,तू माध्यम मात्र ये मान ले।
तुम साधन हो जिस कर्म केउस कर्म का मैं ही कर्ता हूँ।जिस शोक में डूबे हो अर्जुनउस शोक का मैं ही हर्ता हूँ।
मै...

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माँ अमर होती है, माँ मरा नहीं करती

माँ अमर होती है, माँ मरा नहीं करती।माँ जीवित रखती हैपीढ़ी दर पीढ़ी परिवार, परंपरा, प्रेम औरपारस्परिकता के उस भाव कोजो समाज को गतिशील रखता हैउससे पहिए को खींच निकालता हैपरिस्थिति की दलदल से बाहर।
माँ ममता का बीजारोपण करतीअनुवांशिकी के धागों में अमृत की धारा बनकरप्रवाहित होती रहती धमनियों मेंउनमें...

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आराधना झा श्रीवास्तव के हाइकु

वृत्त में क़ैदगोल गोल घूमतीधुरी सी माँ
सँभाले हुएगृहस्थी गोवर्धनकृष्ण से पिता
अहं की छौंकबिगाड़ती ज़ायकाबेस्वाद रिश्ते
प्रवासी आत्मादेह में तलाशती अपना घर
खारा सा नीरअक्सर धो देता है मन का मैल
मायूस बेलगमले में ढूँढतीअपना घर
क्षितिज परपारद के थाल सामोहक चांद
किसने खायी?चाँद की आधी रोटीबादल...

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वो राम राम कहलाते हैं

अवधपुरी से जनकपुरी तकप्रेम की गंगा बहाते हैंवो राम राम कहलाते हैं।राम ही माला, राम ही मोतीमन मंदिर वही बनाते हैं।वो राम राम कहलाते हैं। ॥1॥
कर्तव्यों के पाषाण पे घिसतेकर्म का चंदन अर्पित करते,मर्यादा की डोर पकड़जो अपना धर्म निभाते हैं। वो राम राम कहलाते हैं ॥2॥
मानव जीवन कठिन डगर हैसब संभव विश्...

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आराधना झा श्रीवास्तव का जीवन परिचय