स्वदेस में बिहारी हूँ, परदेस में बाहरी हूँजाति, धर्म, परंपरा के बोझ तले दबी एक बेचारी हूँ।रंग-रूप,नैन-नक्श, बोल-चाल, रहन-सहनसब प्रभावित, कुछ भी मौलिक नहीं।एक आत्मा है, पर वह भौतिक नहीं।जो न था मेरा, जो न हो मेराफिर किस बहस में उलझें सबकि ये है मेरा और ये तेरा।जब तू कौन है ये नहीं जानता,खुद को ही ...
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