यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद। 

वृन्द | Profile & Collections

कवि वृन्द का जन्म संवत् 1720 के लगभग मथुरा के आसपास हुआ था। आपकी शिक्षा कांशी में हुई थी। बाद में कृष्णगढ़ के महाराज मानसिंह ने इन्हें अपना दरबारी बनाकर सम्मानित किया। वे आजीवन वहीं रहे।

कवि वृन्द की ख्याति विशेष रूप से नीति-काव्य के लिए है। आपकी प्रमुख रचना है - वृन्द सतसई। इसमें सात सौ दोहे हैं। आपकी भाषा सरल-सुबोध है। कहावतों और मुहावरों का प्रयोग सुन्दर ढंग से हुआ है।

 

वृन्द's Collection

Total Records: 2

वृन्द के नीति-दोहे

स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं ।जैसे पंछी सरस तरु, निरस भये उड़ि जाहिं ।। १ ।।

More...

कवि वृन्द के दोहे 

जाही ते कछु पाइये, करिये ताकी आस। रीते सरवर पर गये, कैसे बुझत पियास॥ 

More...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें