मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते, दुर्दिन में कभी चाँद सितारे नहीं होते। हम पार भी जायें तो भला जायें किधर से,
उदयभानु हंस का ग़ज़ल संकलन
हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है, बाँध कर के सागर को रास्ता निकाला है। हर दुखी की सेवा ही है मेरे लिए पूजा,
कब तक यूं बहारों में पतझड़ का चलन होगा? कलियों की चिता होगी, फूलों का हवन होगा । हर धर्म की रामायण युग-युग से ये कहती है,
अनुभूति से जो प्राणवान होती है, उतनी ही वो रचना महान होती है। कवि के ह्रदय का दर्द, नयन के आँसू,
मन में सपने अगर नहीं होते, हम कभी चाँद पर नहीं होते। सिर्फ जंगल में ढूँढ़ते क्यों हो?
जी रहे हैं लोग कैसे आज के वातावरण में, नींद में दु:स्वप्न आते, भय सताता जागरण में। बेशरम जब आँख हो तो सिर्फ घूंघट क्या करेगा ?
सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा, घनघोर अमावस में सवेरा देखा। जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
स्वप्न सब राख की ढेरियाँ हो गए, कुछ जले, कुछ बुझे, फिर धुआँ हो गए। पेट की भूख से आग ऐसी लगी,
बैठे हों जब वो पास, ख़ुदा ख़ैर करे फिर भी हो दिल उदास, ख़ुदा ख़ैर करे मैं दुश्मनों से बच तो गया हूँ, लेकिन
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं। कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
मैं उनकी याद को दिल से कभी भुला न सका, लगी वो आग जिसे आज तक बुझा न सका।
युवक जागो! अपना देश छोड़ यूँ मत भागो!