सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 5

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सुख-दुख | कविता

मैं नहीं चाहता चिर-सुख, मैं नहीं चाहता चिर-दुख, सुख दुख की खेल मिचौनी खोले जीवन अपना मुख ! सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन; फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि से ओझल हो घन ! जग पीड़ित है अति-दुख से जग पीड़ित रे अति-सुख से, मानव-जग में बँट जाएँ दुख सुख से औ’ सुख दुख से ! अविरत दुख ...

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स्वप्न बंधन

बाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में एक मधुर जीवित आभा सी लिपट गई तुम मन में! बाँध लिया तुमने मुझको स्वप्नों के आलिंगन में! तन की सौ शोभाएँ सन्मुख चलती फिरती लगतीं सौ-सौ रंगों में, भावों में तुम्हें कल्पना रँगती, मानसि, तुम सौ बार एक ही क्षण में मन में जगती! तुम्हें स्मरण कर जी उठते यदि...

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बाँध दिए क्यों प्राण

सुमित्रानंदन पंत की हस्तलिपि में उनकी कविता, 'बाँध दिए क्यों प्राण'

 
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बाँध दिए क्यों प्राण प्राणों से! तुमने चिर अनजान प्राणों से! गोपन रह न सकेगी, अब यह मर्म कथा, प्राणों की न रुकेगी, बढ़ती विरह व्यथा, विवश फूटते गान प्राणों से! यह विदेह प्राणों का बंधन, अंतर्ज्वाला में तपता तन, मु...

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जीवन का अधिकार

जो है समर्थ, जो शक्तिमान,जीवन का है अधिकार उसे।उसकी लाठी का बैल विश्‍व,पूजता सभ्‍य-संसार उसे!
दुर्बल का घातक दैव स्‍वयं,समझो बस भू का भार उसे।'जैसे को तैसा'-- नियम यही,होना ही है संहार उसे।
है दास परिस्थितियों का नर,रहना है उसके अनुसार उसे।जीता है योग्‍य सदा जग में ,दुर्बल ही है...

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सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant का जीवन परिचय