अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़ दोनों मूरख, दोनों अक्खड़ हाट से लौटे, ठाठ से लौटे
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ, मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ!
प्राण रहते चाहता हूँ ओंठ पर नित गान रहते भाग्य का यह चक्र फिरता या न फिरता
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ
कलम अपनी साध और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध। यह कि तेरीभर न, हो तो कह
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको, फिर चुपके-चुपके धाम बता दूँ तुमको; तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे-धीमे
यहाँ भवानी प्रसाद मिश्र के समृद्ध कृतित्व में से कुछ ऐसी कविताएं चयनित की गई हैं जो समकालीन समाज ओर विचारधारा का समग्र चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम हों...