ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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तमाम घर को .... | ग़ज़ल

तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
पता नहीं वो दीए क्यूँ बुझा के रखता था
बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं,

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किसी के दुख में .... | ग़ज़ल

किसी के दुख में रो उट्ठूं कुछ ऐसी तर्जुमानी दे
मुझे सपने न दे बेशक, मेरी आंखों को पानी दे
मुझे तो चिलचिलाती धूप में चलने की आदत है

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तुम मेरी बेघरी पे...

तुम मेरी बेघरी पे बड़ा काम कर गए
कागज का शामियाना हथेली पर धर गए
बोगी में रह गया हूं अकेला मैं दोस्तो!

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वो कभी दर्द का...

वो कभी दर्द का चर्चा नहीं होने देता
अपने जख्मों का वो जलसा नहीं होने देता
मेरे आंगन में गिरा देता है पत्ते अक्सर

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मेरी औक़ात का...

मेरी औक़ात का ऐ दोस्त शगूफ़ा न बना
कृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना
ये हवाएँ कभी पत्थर भी उठा लेती हैं

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जिस तिनके को ...

जिस तिनके को लोगों ने बेकार कहा था
चिड़िया ने उसको अपना संसार कहा था
बाँट गया था अपने हिस्से की जो रोटी

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ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें

प्रस्तुत हैं ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें !

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ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek का जीवन परिचय