कलम गहो हाथों में साथी शस्त्र हजारों छोड़ तूलिका चले, खुले रहस्य तो
शब्दों के नर्तन से शापित अंतर्मन शिथिलाया लिखने को तो बहुत लिखा
लुढ़कता पत्थर शिखर से, क्यों हमें लुढ़का न देगा । क्रेन पर ऊँचा चढ़ा कर, चैन उसकी क्यों तोड़ दी दर्शन बनाया लोभ का , मझधार नैया छोड़ दी
नजरों से गश आया साकी मदिरा ढलने पर क्या होगा।