अज्ञेय साहित्य Hindi Literature Collections of Ajneya

कुल रचनाएँ: 11

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शत्रु

ज्ञान को एक रात सोते समय भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिये और कहा, ‘‘ज्ञान, मैंने तुम्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर संसार में भेजा है। उठो, संसार का पुनर्निर्?...

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मेरे देश की आँखें

नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे

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कलगी बाजरे की

हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरी बाजरे की।
अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका

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साँप!

साँप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना

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जो पुल बनाएँगें

जो पुल बनाएँगें
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे

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मेजर चौधरी की वापसी

किसी की टाँग टूट जाती है, तो साधारणतया उसे बधाई का पात्र नहीं माना जाता। लेकिन मेजर चौधरी जब छह सप्ताह अस्पताल में काटकर बैसाखियों के सहारे लडख़ड़ाते हु?...

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योगफल

सुख मिला :
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ :

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कोठरी की बात

मुझ पर किसी ने कभी दया नहीं की, किन्तु मैं बहुतों पर दया करती आयी हूँ। मेरे लिए कभी कोई नहीं रोया, किन्तु मैंने कितनों के लिए आँसू बहाये हैं, ठंडे, कठोर, पत्थ...

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लक्षण

आँसू से भरने पर आँखें
और चमकने लगती हैं।
सुरभित हो उठता समीर

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यह दीप अकेला

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है-- गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा?

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सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ

सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान!
तुम, जो भाई को अछूत कह वस्त्र बचा कर भागे,
तुम, जो बहिनें छोड़ बिलखती बढ़े जा रहे आगे!

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अज्ञेय का जीवन परिचय