मैं अबोध सा बालक तेरा, ईश्वर! तू है पालक मेरा । हाथ जोड़ मैं करूँ वंदना,
लालों में वह लाल बहादुर, भारत माता का वह प्यारा। कष्ट अनेकों सहकर जिसने,
पश्चिम की सभ्यता को तो अपना रहे हैं हम, दूर अपनी सभ्यता से मगर जा रहे हैं हम । इस रोशनी में कुछ भी हमें सूझता नहीं,
भूल कर भी न बुरा करना जिस क़दर हो सके भला करना। सीखना हो तो शमअ़ से सीखो
सुबह सवेरे उठकर बच्चो! मात-पिता को शीश नवाओ । दातुन कुल्ला करके प्रतिदिन,
वह मोती का लाल जवाहर, अपने युग का वह नरनाहर । भोली भाली मुस्कानों पर,
वह इस युग का वीर शिवा था, आज़ादी का मतवाला था।
गुल्ली डंडा और कबड्डी, चोर-सिपाही आँख मिचौली। कुश्ती करना, दौड़ लगाना
बड़ी नाज़ुक है डोरी साँस की यह कहीं टूटी तो बाकी क्या रहेगा रखो तुम बंद चाहे अपनी घड़ियां
प्रेम देश का ढूंढ रहे हो गद्दारों के बीच फूल खिलाना चाह रहे हो अंगारों के बीच खतरनाक है इनके साए में चलना भी दोस्त
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है यह सवेरा भी क्या सवेरा है हम उजाले की आस रखते थे
बच्चों के लिए लिखने वाले के पास बच्चों जैसा सरल एवं निश्छल मन भी होना चाहिए । प्राय: कहा जाता है कि बच्चों के लिए लिखने वालों की संख्या अधिक नहीं है । कुछ क?...
प्रतिपल घूँट लहू के पीना, ऐसा जीवन भी क्या जीना । बहुत सरल है घाव लगाना,
बात हम मस्ती में ऐसी कह गए, होश वाले भी ठगे से रह गए। कष्ट जीवन में हमारे थे बहुत,
सामने आईने के जाओगे? इतनी हिम्मत कहां से लाओगे? सख्त मुश्किल है सामना अपना