गुल्ली डंडा और कबड्डी,
चोर-सिपाही आँख मिचौली।
कुश्ती करना, दौड़ लगाना
है अपना आमोद पुराना।
खेल हमारे ऐसे होते,
ख़र्च न जिसमें पैसे होते।
मजा बहुत आता है इनमें,
बल भी बढ़ जाता है इनमें।
निर्धन और धनी सब खेलें,
ख़ुश होते हैं जब-जब खेलें।
चौपड़ औ' शतरंज नाम के,
खेल हमारे बड़े काम के।
नारी, नर, नृप खेला करते,
शक्ति बुद्धि की परखा करते।
अंग्रेजों से हमने सीखे,
वॉलीबॉल, फुटबॉल सरीखे।
फिर क्रिकेटर औ' हॉकी जैसे,
कैरम, टेबल टेनिस ऐसे।
पर ये खेल बहुत ख़र्चीले,
कर देते हैं बटुए ढीले।