रसखान साहित्य Hindi Literature Collections of Raskhan

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दोहे | रसखान के दोहे

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥

बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि। सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान। जो आवत ...

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रसखान की पदावलियाँ | Raskhan Padawali

मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥ या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि,...

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रसखान के फाग सवैय्ये

मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै।कर कुंकुम लै करि कंजमुखि प्रिय के दृग लावन को धमकैं।।रसखानि गुलाल की धुंधर में ब्रजबालन की दुति यौं दमकै।मनौ सावन सांझ ललाई के मांझ चहुं दिस तें चपला चमकै।।
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खेलत फाग लख्यौ पिय प्यारी को ता मुख की उपमा किहीं दीजै।देखत ही बनि आवै भलै रसखन कहा है ज...

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रसखान का जीवन परिचय