काका हाथरसी | Kaka Hathrasi साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 17

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काका हाथरसी का हास्य काव्य

अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार
बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड' आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर

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वंदन कर भारत माता का | काका हाथरसी की हास्य कविता

वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।

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हास्य दोहे | काका हाथरसी

अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
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स्वतंत्रता का नमूना

बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड' आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू

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जय बोलो बेईमान की | हास्य-कविता

मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार
ऊपर सत्याचार है भीतर भ्रष्टाचार
झूठों के घर पंडित बाँचें कथा सत्य भगवान की

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काका हाथरसी की दो हास्य कविताएं

चोटी के कवि
 
बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’।

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सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा

सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
हम भेड़-बकरी इसके यह ग्वारिया हमारा
सत्ता की खुमारी में, आज़ादी सो रही है

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हिन्दी-भक्त

सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद ।
कलाकार द्वय भिडे गए, चलने लगा विवाद ।।
चलने लगी विवाद, एक थे कविवर 'घायल' ।

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हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य।
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-

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हिंदी-प्रेम | हास्य

हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई

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काका हाथरसी की कुंडलियाँ

पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ।
कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।।
करें एक के आठ, चल रही आपाधापी ।

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महंगाई

जन-गण मन के देवता, अब तो आंखें खोल
महंगाई से हो गया, जीवन डांवाडोल
जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू

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राष्ट्रीय एकता

कितना भी हल्ला करे, उग्रवाद उदंड,
खंड-खंड होगा नहीं, मेरा देश अखंड।
मेरा देश अखंड, भारती भाई-भाई,

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कार-चमत्कार | कुंडलियाँ

[इसमें 64 कार हैं, सरकार]
अहंकार जी ने कहा लेकर एक डकार, 
कितने कार प्रकार हैं, इस पर करें विचार। 

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स्त्रीलिंग पुल्लिंग 

काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंह
दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग
ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर गलती की है

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कुर्सी पर काका की कुंडलियाँ

कुरसीमाई
शासन की कुरसी मिले, हों साहब के ठाठ,
कुरसी जी की कृपा से, सोफा हाजिर आठ।

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श्रोताओं की फब्तियां

कवियों की पंक्तियां, श्रोताओं की फब्तियां :
० कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...... (नीरज)
( तो हम क्या करें, टाइम पर क्यों नहीं आए आप ? )

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काका हाथरसी | Kaka Hathrasi का जीवन परिचय