भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 22

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परिहासिनी

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की लघु हास्य-व्यंग्य से भरपूर - परिहासिनी।
 
खुशामद
एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, "कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली?"
बेचारा उदास होकर बोला, "यार, कुछ न पूछो, मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच परी समझ लिया और हम आदमजाद से बोलने में भी परहे...

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दोहे और सोरठे

है इत लाल कपोल ब्रत कठिन प्रेम की चाल।मुख सों आह न भाखिहैं निज सुख करो हलाल॥
प्रेम बनिज कीन्हो हुतो नेह नफा जिय जान।अक प्यारे जिय की परी प्रान-पुँजी में हान॥
तेरोई दरसन चहैं निस-दिन लोभी नैन ।श्रवन सुनो चाहत सदा सुन्दर रस-मै बैन ।।
डर न मरन बिधि बिनय यह भूत मिलैं निज बास ।प्रिय हित वापी मुकुर ...

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हिन्दी भाषा की समृद्धता

यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वाले को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारण्ट बता दें।
सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग ...

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भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है

आज बड़े आनंद का दिन है कि छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत है। बनारस ऐसे-ऐसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो हम यह न कहेंगे कि बलिया में जो कुछ हमने देखा वह बहुत ही प्रशंसा के योग्य है। इस उत्साह का ...

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अद्भुत संवाद

"ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो।""यह कूदेगा तो नहीं?""कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो संभालो। ""यह काटता है?""नहीं काटेगा, लगाम पकड़े रहो।""क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं तब सम्हलता है?""नहीं !""फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं? आप तो हई हैं।"
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 

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तीव्रगामी

एक शख्स ने किसी से कहा कि अगर मैं झूठ बोलता हूँ तो मेरा झूठ कोई पकड़ क्यों नहीं लेता।
उसने जवाब दिया कि आपके मुँह से झूठ इस कदर जल्द निकलता है कि कोई उसे पकड़ नहीं सकता।
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 

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असल हकदार

एक वकील ने बीमारी की हालत में अपना सब माल और असबाब पागल, दीवाने और सिड़ियों के नाम लिख दिया। लोगों ने पूछा, ‘यह क्या?'
तो उसने जवाब दिया कि, "यह माल ऐसे ही आदमियों से मुझे मिला था और अब ऐसे ही लोगों को दिये जाता हूँ।"
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 
 

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एक से दो

एक काने ने किसी आदमी से यह शर्त बदी कि, "जो मैं तुमसे ज्यादा देखता हूँ तो पचास रूपया जीतूँ।"
और जब शर्त पक्की हो चुकी तो काना बोला कि, "लो, मैं जीता।"
दूसरे ने पूछा, "क्यों?"
इसने जवाब दिया कि, "मैं तुम्हारी दोनों आँखें देखता हूँ और तुम मेरी एक ही।"
 
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 

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सच्चा घोड़ा

एक सौदागर किसी रईस के पास एक घोड़ा बेचने को लाया और बार-बार उसकी तारीफ में कहता, "हुजूर, यह जानवर गजब का सच्चा है।"
रईस साहब ने घोड़े को खरीद कर सौदागर से पूछा कि, "घोड़े के सच्चे होने से तुम्हारा मतलब क्या है?"
सौदागर ने जवाब दिया, "हुजूर, जब कभी मैं इस घोड़े पर सवार हुआ, इसने हमेशा गिराने का ...

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न्यायशास्त्र

मोहिनी ने कहा, "न जाने हमारे पति से, जब हम दोनों की एक ही राय है तब, फिर क्यों लड़ाई होती है? ... क्योंकि वह चाहते हैं कि मैं उनसे दबूँ और यही मैं भी।"
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 

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गुरु घंटाल

बाबू प्रहलाददास से बाबू राधाकृष्ण ने स्कूल जाने के वक्त कहा, "क्यों जनाब, मेरा दुशाला अपनी गाड़ी पर लिए जाइएगा?"
उन्होंने जवाब दिया, "बड़ी खुशी से। मगर फिर आप मुझसे दुशाला किस तरह पाइएगा?"
राधाकृष्ण जी बोले, "बड़ी आसानी से, क्योंकि मैं भी तो उसे अगोरने साथ ही चलता हूँ।"
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र...

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अचूक जवाब

एक अमीर से किसी फकीर ने पैसा मांगा। उस अमीर ने फकीर से कहा, "तुम पैसों के बदले लोगों से लियाकत चाहते तो कैसे लायक आदमी हो गये होते।"
फकीर चटपट बोला, "मैं जिसके पास जो कुछ देखता हूँ, वही उससे मांगता हूँ।"
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
 
 

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अंगहीन धनी

एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा।
और नौकरों ने पूछा, "क्यों बे, हँसता क्यों है?"
तो उसने जवाब दिया,"भाई, सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उन सभों से एक बत्ती न बुझे। जब हम गए, तब बुझे।"
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
 
 

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गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल

गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली मेंबुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में।
नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारेये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में।
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दोमनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में।
है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी कुमकुम कुछ है,बने हो ख़ुद ...

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ख़ुशामद | लघुकथा

एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूक़ा तुम्हें क्यों नहीं मिली।' बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी ख़ुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज़ किया।'
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
 

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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्लै है सोय।लाख उपाय अनेक यों, भले करे किन कोय॥इक भाषा इक जीव इक, मति सब घर के लोग। तबै बनत है सबन सों, म...

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अंगहीन धनी

एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा।
और नौकरों ने पूछा, "क्यों बे, हँसता क्यों है?"
तो उसने जवाब दिया,"भाई, सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उन सभों से एक बत्ती न बुझे। जब हम गए, तब बुझे।"
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
 

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भारतेन्दु की मुकरियां

सब गुरुजन को बुरो बतावै ।अपनी खिचड़ी अलग पकावै ।।भीतर तत्व न झूठी तेजी ।क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी ।।
तीन बुलाए तेरह आवैं ।निज निज बिपता रोइ सुनावैं ।।आँखौ फूटे भरा न पेट ।क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रैजुएट ।।
सुंदर बानी कहि समुझावै ।बिधवागन सों नेह बढ़ावै ।।दयानिधान परम गुन-आगर ।सखि सज्जन नहिं वि...

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चने का लटका | बाल-कविता

चना जोर गरम।चना बनावैं घासी राम। जिनकी झोली में दूकान।।चना चुरमुर-चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोलै।।चना खावैं तोकी मैना। बोलैं अच्छा बना चबैना।।चना खाएँ गफूरन, मुन्ना। बोलैं और नहिं कुछ सुन्ना।।चना खाते सब बंगाली। जिनकी धोती ढीली-ढाली।।चना खाते मियाँ जुलाहे। दाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे।।चना हाकिम स...

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ग़ज़ल

आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया ।ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया ॥
बाग़बाँ है चार दिन की बाग़े आलम में बहार ।फूल सब मुरझा गए ख़ाली बियाबाँ रह गया ॥
इतना एहसाँ और कर लिल्लाह ऐ दस्ते जनूँ ।बाक़ी गर्दन में फ़कत तारे गिरेबाँ रह गया ॥
याद आई जब तुम्हारे रूए रौशन की चमक ।मैं सरासर ...

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स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन

स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती और बाबू केशवचन्‍द्रसेन के स्‍वर्ग में जाने से वहां एक बहुत बड़ा आंदोलन हो गया। स्‍वर्गवासी लोगों में बहुतेरे तो इनसे घृणा करके धिक्‍कार करने लगे और बहुतेरे इनको अच्‍छा कहने लगे। स्‍वर्ग में भी 'कंसरवेटिव' और 'लिबरल' दो दल हैं। जो पुरान...

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हरिद्वार यात्रा

श्रीमान क.व.सु. संपादक महोदयेषु!
श्री हरिद्वार को रुड़की के मार्ग से जाना होता है। रुड़की शहर अँग्रेज़ों का बसाया हुआ है। इसमें दो-तीन वस्तु देखने योग्य हैं, एक तो (कारीगरी) शिल्प विद्या का बड़ा कारख़ाना है जिसमें जलचक्की पवनचक्की और भी कई बड़े-बड़े चक्र अनवरत स्वचक्र में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, म...

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra का जीवन परिचय