भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | Profile & Collections

युग प्रवर्तक बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी नगरी के प्रसिद्ध 'सेठ अमीचंद' के वंश में  9 सितम्बर 1850 को हुआ। आपके पिता 'बाबू गोपाल चन्द्र' भी एक कवि थे। इनके घराने में वैभव एवं प्रतिष्ठा थी। जब इनकी अवस्था मात्र 5 वर्ष की थी, इनकी माता चल बसी और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे।

भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से गम्भीर प्रेरणा ली। इनके मित्र मण्डली में बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से ये प्रभावित थे। इनके पास विपुल धनराशि थी, जिसे इन्होंने साहित्यकारों की सहायता हेतु मुक्त हस्त से दान किया। ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार थे।

मुख्य रचनाएँ:

नाटक: वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, भारत दुर्दशा, सत्य हरिश्चंद्र, श्री चंद्रावली, नीलदेवी, अंधेर नगरी

अनुवाद : बाँग्ला से 'विद्यासुंदर' (नाटक), संस्कृत से 'मुद्राराक्षस' (नाटक), और प्राकृत से 'कपूरमंजरी' (नाटक)

काव्‍य कृतियाँ: भक्‍त-सर्वस्‍व, प्रेम-मालिका, प्रेम-माधुरी, प्रेम-तरंग, उत्‍तरार्द्ध-भक्‍तमाल, प्रेम-प्रलाप, गीत-गोविंदानंद, होली, मधु-मुकुल, राग-संग्रह, वर्षा-विनोद, विनय प्रेम पचासा, फूलों का गुच्‍छा, प्रेम-फुलवारी, कृष्‍णचरित्र

निधन: 6 जनवरी 1885 को आपका निधन हो गया।