अभिभावक - वाचस्पति पाठक की कहानी
अपरिचित देश के इस नवीन वासस्थान में शरद् ऋतु का मध्यान्ह; मेरे हृदय के अनिश्चित विषाद सा शून्य था। जिसे संसार में कोई काम नहीं––वह कैसे जीता है?–– विषयशून्य हृदय में यह अचिन्तनीय चिन्ता व्याप्त हुई––अजगर भी जीव है, बेचारा विशाल...
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