ऐन उसी वक्त मोबाइल पर बज उठा तुम्हारा नंबर
जिंदगी को जिया मैंने इतना चौकस होकर जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
बगल के कमरे से उठती हुई दबी-दबी हँसी की आवाज उसके कमरे से टकरा रही है। ये हँसी है या चूड़ियों की खनक! पता नहीं, शायद दोनों ही आवाजें हैं। इन आवाजों ...
कोहरे की ओढ़नी से झांकती है संकुचित-सी वर्ष की पहली सुबह यह स्वप्न और संकल्प भर कर अंजुरी में
मिनी ने कमरे में धीरे से झांका, मम्मी सो रही थीं। यह और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। उसने हलकी-सी आवाज लगाई। "मम्मी।" मम्मी ने पता नहीं सुना या...