डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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नए जमाने का एटीएम    

धनाधन बैंक के मैनेजर आज बड़े गुस्से में हैं। नामी-गिरामी लोगों की लोन फाइल बगल में पटकते हुए सेक्रेटरी से कहा, किसानों की फाइल ले आओ। देखते हैं, किसके पास से कितना आना है। सेक्रेटरी ने आश्चर्य से कहा, सर! कहीं ओस चाटने से प्यास बुझती है। बड़े लोगों की लोन वाली फाइलें छोड़ गरीब किसानों की फाइलों म...

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एक यांत्रिक संतान

उसकी कोख में बच्ची थी। अब आप पूछेंगे कि मुझे कैसे पता? कहीं डॉक्टरों को खिला-पिलाकर मालूम तो नहीं करवा लिया! यदि मैं कहूँ कि उसकी कोख में बच्चा था, तब निश्चित ही आप इस तरह का सवाल नहीं करते। आसानी से मान लेते। हमारे देश में लिंग भेद केवल व्याकरण तक सीमित है। वैचारिक रूप से हम अब भी पुल्लिंगवादी ह...

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सत्ता का नया फार्मुला

एक समय था जब सरकार जनता से बनती थी। चुनाव की गर्मी के समय एयर कंडीशनर और बारिश की फुहार जैसे वायदे करने वाले जब सरकार में आते हैं, तब इनके वायदों को न जाने कौन सा लकवा मार जाता है कि कुछ भी याद नहीं रहता। अब तो जनता को बेवकूफ बनाने का एक नया फार्मूला चलन में आ गया है। चुनाव के समय S+R=JP का फार्म...

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यंत्र, तंत्र, मंत्र | व्यंग्य

एक यंत्र था। उसके लिए राजा-रंक एक समान थे। सो, मंत्री जी की कई गोपनीय बातें भजनखबरी को पता चल गयीं। मंत्री जी कुछ कहते उससे पहले ही भजनखबरी उनकी पोल खोल बैठा। पहले तो मंत्री जी को खूब गुस्सा आया। वह क्या है न कि कुर्सी पर बने रहने के लिए गुस्से को दूर रखना पड़ता है। इसलिए मंत्री जी ने भजनखबरी को ...

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कुत्ते और इंसान

शहर के बीचों-बीच एक बगीचा है, जहां रोज़ सुबह लोग टहलने आते हैं। किसी के हाथ में कुत्ते की रस्सी है, किसी के हाथ में मोबाइल। कुत्ते बेफिक्र घास पर दौड़ रहे हैं, और लोग थके-हारे सांसें ले रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे कुत्ते भी इंसान को टहला रहे हों।
अब देखिए, शहर में इंसान की हालत ऐसी हो गई है कि वो ...

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हैदराबादी कुर्सी

अरे भाई, अपने शहर हैदराबाद की बात ही निराली है। यहाँ की गली-गली में जो बयार बहती है, वो क्या कहें! अब देखिए, दिल्ली में कभी कोई तैमूर, तो कभी चंगेज खाँ आए, वहाँ से लेकर यहां तक बड़े-बड़े लोग आए, लूट कर चले गए। सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात सब उठा ले गए, लेकिन हमारे हैदराबाद का वो 'सिंहासन', मतलब यहाँ ...

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चाय का चक्कर | व्यंग्य

एक दिन मैं और मेरे मित्र, विकास जी, एक सरकारी दफ्तर में गए थे। दफ्तर में पहुंचते ही यह खबर फैल गई कि किसी बड़े आदमी के साथ कोई राजनेता दफ्तर में आया है। खैर, यह खबर जल्द ही बड़े साहब के कानों तक पहुंच गई होगी, जो एक अनुभवी अधिकारी थे। साहब ने अपनी डेली ड्यूटी के दस्तावेजों को पलटते हुए एक पल के ल...

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डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त का जीवन परिचय