एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई, मेरे कमरे के ठीक सामने खिड़की से दिखता एक पेड़,
मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में पीर पुराण भरी गाथा हूँ गिरमिटिया बन सात समंदर
महाकाल से भी प्रबल कामनाएं, हैं विकराल भीषण अहम् की हवाएं, ये पर्वत हिमानी हैं, ममता के आँचल,