महाकाल से भी प्रबल कामनाएं,हैं विकराल भीषण अहम् की हवाएं,ये पर्वत हिमानी हैं, ममता के आँचल,नहीं तृप्त होते हैं तृष्णा के बादल,ये भीषण बबंडर है कुंठा की दल-दल,मुझे थाम लो इसमें धंसने से पहले,मुझे थाम लेना बिखरने से पहले।
ये स्वर्णिम हिरण के प्रलोभन हैं जब तकये लक्ष्मण की रेखाएँ लाँघेंगीं तब तकभ्र...
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