त्रिलोक सिंह ठकुरेला साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 9

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ऐसा वर दो 

भगवन् हमको ऐसा वर दो।जग के सारे सद्गुण भर दो॥
हम फूलों जैसे मुस्कायें,सब पर प्रेम ­ सुगंध लुटायें,हम पर­हित कर खुशी मनायें,ऐसे भाव हृदय में भर दो।भगवन् हमको ऐसा वर दो॥
दीपक बनें, लड़े हम तम से,ज्योर्तिमय हो यह जग हम से,कभी न हम घबरायें गम से,तन मन सबल हमारे कर दो।भगवन्, हमको ऐसा वर दो॥
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कठपुतली

ठुमक-ठुमक नाचे कठपुतली सबके मन को मोहे।रंग बिरंगे सुन्दर कपड़े उसके तन पर सोहे॥
हाथ नचाती, पैर नचाती, रह रह कमर घुमाती। नये नये करतब दिखलाकर सबका मन बहलाती॥
उसे थिरककर नचा रहे हैं आशाओं के धागे। सपनों के नव पंख लगाकर बढ़ती जाती आगे॥ 
तुम भी व्यर्थ स...

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पापा, मुझे पतंग दिला दो

पापा, मुझे पतंग दिला दो,भैया रोज उड़ाते हैं।मुझे नहीं छूने देते हैं,दिखला जीभ, चिढ़ाते हैं॥
एक नहीं लेने वाली मैं,मुझको कई दिलाना जी।छोटी सी चकरी दिलवाना,मांझा बड़ा दिलाना जी॥
नारंगी और नीली, पीलीहरी, बैंगनी,भूरी,काली।कई रंग,आकार कई हों,भारत के नक्शे  वाली ॥
कट जायेंगी कई पतंगे,जब मेरी लह...

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ

जब भी देखूं, आतप हरता।मेरे मन में सपने भरता।जादूगर है, डाले फंदा।क्या सखि, साजन? ना सखि, चंदा।
लंबा कद है, चिकनी काया।उसने सब पर रौब जमाया।पहलवान भी पड़ता ठंडा।क्या सखि, साजन? ना सखि, डंडा।
उससे सटकर, मैं सुख पाती।नई ताजगी मन में आती।कभी न मिलती उससे झिड़की।क्या सखि, साजन? ना सखि, खिड़की।
जैसे...

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया 

कुण्डलिया 
मोती बन जीवन जियो, या बन जाओ सीप।जीवन उसका ही भला, जो जीता बन दीप।।जो जीता बन दीप, जगत को जगमग करता।मोती सी मुस्कान, सभी के मन मे भरता।‘ठकुरेला’ कविराय, गुणों की पूजा होती।।बनो गुणों की खान, फूल, दीपक या मोती।।
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चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव।मिल जाता है सब उसे, ...

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चिड़िया

घर में आती जाती चिड़िया ।सबके मन को भाती चिड़िया ।।
तिनके लेकर नीड़ बनाती ,अपना घर परिवार सजाती ,दाने चुन चुन लाती चिड़िया ।सबके मन को भाती चिड़िया ।। 
सुबह सुबह जल्दी जग जाती ,मीठे स्वर में गाना गाती ,हर दिन सुख बरसाती चिड़िया ।सबके मन को भाती चिड़िया ।।
कभी नहीं वह आलस करती ,मेहनत  ...

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जीवन में नव रंग भरो

सीना ताने खड़ा हिमालय, कहता कभी न झुकना तुम।झर झर झर झर बहता निर्झर,कहता कभी न रुकना तुम॥
नीलगगन में उड़ते पक्षी,कहते नभ को छूलो तुम।लगनशील को ही फल मिलता, इतना कभी न भूलो तुम॥
सन सन चलती हवा झूमकर,कहती 'चलते रहना है। जीवन सदा संवरता श्रम से,श्रम जीवन का गहना है॥
प्रकृति सिखाती रहती हर क्षण,मन...

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नई सदी के बच्चे

नई सदी के बच्चे हैं हम मिलकर साथ चलेंगे।प्रगति के रथ को हम मिलकर नई दिशाएं देंगे।
जल, थल, नभ में काम करेंगे जो चाहें पायेंगे। सदा राष्ट्र की विजय पताका मिलकर फहरायेंगे॥
हर कुरीति, हर आडम्बर को मिलकर नष्ट करेंगे। सबके मन में नई उमंगें,सपने नये भरेंगे॥
नई सदी के बच्चे हैं हम,नव प्रतिमान गढ़ेंगे।...

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प्यारे बादल

देखो, माँ! नभ में आ पहुँचे, ये घनघोर सुघड़ बादल। इन्हें देखकर इतराई, झूमी, हवा हुई कितनी चंचल॥ 
उड़े जा रहे आसमान में, बादल अपनी मस्ती में। पता नहीं ये उड़ते उड़तेजायेंगे किस बस्ती में॥
मन करता है, नभ तक जाकर, इनको बाहों में भर लूँ। काश, साथ में उड़कर इनक...

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला का जीवन परिचय