जहाँ नंगोने की थारी वहाँ जनता है उमड़ी भारी, सिकुड़ गई चेहरे की चमड़ी बिगड़ी है सूरत प्यारी, फिर भी कुटे और छने नंगोनाचल रही प्याली पर प्याली।
बेटा बिना फीस दे पढ़ताबेटी बिन पुस्तक के, फिर भी बापू रात-रात भरपिये नंगोना कसके।
कभी-कभी भोजन भी दूभर घर में पड़ गये लाले, फिर भी बापू पिये रात भर दिन ...
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