एक बार शिव शम्भू को लगी ज़ोर की भूख भीषण तप से गया
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए करो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए खबर माना नहीं अच्छी, मगर इसमें बुरा क्या है
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं ज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं खरा हो या कि हो खोटा, खनक तो एक जैसी है
बड़े साहिब तबीयत के ज़रा नासाज़ बैठे हैं हमे डर है गरीबों से तनिक नाराज़ बैठे हैं महल के गेट पर, सोने की तख्ती पर लिखाया है
खयालों की जमीं पर मैं हकीकत बो के देखूंगी कि तुम कैसे हो, ये तो मैं ,तुम्हारी हो के देखूंगी तुम्हारे दिल सरीखा और भी कुछ है, सुना मैंने
चांद कुछ देर जो खिड़की पे अटक जाता है मेरे कमरे में गया दौर ठिठक जाता है चांदनी सेज पर मखमल सी बिछा जाती है
कोई बारिश पड़े ऐसी, जो रिसते घाव धो जाए भले आराम कम आए, ज़रा सा दर्द तो जाए बहुत चाहा कभी मैंने, मेरी मर्ज़ी चले थोड़ी
बात छोटी थी, मगर हम अड़ गए सच कहें, लेने के देने पड़ गए फूल थे, समझे कि हमसे बाग है