संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 10

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शिव की भूख

एक बार शिव शम्भू कोलगी ज़ोर की भूखभीषण तप से गयाकंठ काहलाहल तक सूख !
देखा, चारों ओरबर्फ ही बर्फ,दिखी पथराई !पार्वती के चूल्हे में भीअग्नि नहीं दिखाई !
"तुम जो तप में डूबे स्वामीमैं भी ध्यान में खोईदोनों ऐसे लीन हुए कि सूनी रही रसोई।"
दूध चढ़ाने वाले आयेलाये भांग, धतूरा !शिव ने आधे मन से ख...

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कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल

कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाएकरो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए
खबर माना नहीं अच्छी, मगर इसमें बुरा क्या हैकि जूते पोंछने के काम ही अखबार आ जाए
दिखाओ ख्वाब जन्नत के, मगर इतना न बहकाओकहीं ऐसा न हो, वो बेच कर घर बार आ जाए
जिसे हर बज़्म ने तहसीन से महरूम रक्खा हैहमारी बज़्म में या ...

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मुहब्बत की जगह--- | ग़ज़ल

मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैंज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं
खरा हो या कि हो खोटा, खनक तो एक जैसी हैकिसी कासे में ये सिक्का चला कर देख लेते हैं
हमारी जीभ से अक्सर फिसलने को तरसता हैहै कितनी दूर का किस्सा, चला कर देख लेते हैं
तसल्ली हो गई हमको, यहां सब यार हैं अपनेइन्हीं क...

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कलम इतनी घिसो... | ग़ज़ल

कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाएकरो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए
खबर माना नहीं अच्छी, मगर इसमें बुरा क्या हैकि जूते पोंछने के काम ही अखबार आ जाए
दिखाओ ख्वाब जन्नत के, मगर इतना न बहकाओ कहीं ऐसा न हो, वो बेच कर घर बार आ जाए
जिसे हर बज़्म ने तहसीन से महरूम रक्खा हैहमारी बज़्म में या...

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बड़े साहिब तबीयत के... | ग़ज़ल

बड़े साहिब तबीयत के ज़रा नासाज़ बैठे हैंहमे डर है गरीबों से तनिक नाराज़ बैठे हैं
महल के गेट पर, सोने की तख्ती पर लिखाया है'यहां के तख्त पर सबसे बड़े फ़य्याज़ बैठे हैं'
नया फरमान आया है, परों में सर छुपाने काजमीं की ओर मुंह कर के चिड़ी, शहबाज़ बैठे हैं
सुना है जो कलम वाले कभी जौहर दिखाते थेदुबक...

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खयालों की जमीं पर... | ग़ज़ल

खयालों की जमीं पर मैं हकीकत बो के देखूंगीकि तुम कैसे हो, ये तो मैं ,तुम्हारी हो के देखूंगी
तुम्हारे दिल सरीखा और भी कुछ है, सुना मैंनेकिसी पत्थर की गोदी में मैं सर रख, सो के देखूंगी
है नक्शा हाथ में लेकिन भटकने का इरादा हैतुम्हारे शहर को मैं आज थोड़ा खो के देखूंगी
बड़ी जिद्दी है ये बदली, नहीं ...

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चांद कुछ देर जो ... | ग़ज़ल

चांद कुछ देर जो खिड़की पे अटक जाता हैमेरे कमरे में गया दौर ठिठक जाता है
चांदनी सेज पर मखमल सी बिछा जाती हैसलवटों में कोई चंदन सा महक जाता है
तुम मेरे पास, बहुत पास चले आते होवक्त गुज़री हुई राहों में भटक जाता है
जिस्म को याद कोई सर्द छुअन आती हैफिर बुझी प्यास का अंगार धधक जाता है
सांस सीने से...

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कोई बारिश पड़े ऐसी... | ग़ज़ल

कोई बारिश पड़े ऐसी, जो रिसते घाव धो जाएभले आराम कम आए, ज़रा सा दर्द तो जाए
बहुत चाहा कभी मैंने, मेरी मर्ज़ी चले थोड़ीयही मर्ज़ी है अब मेरी, जो होना है,सो हो जाए
बड़ी छोटी थी वो ख्वाहिश, जिसे दिल में जगह दी थीनहीं मालूम था सरसब्ज़, कितने बीज बो जाए
न जाने कौन सी मंज़िल है, जो चुंबक सरीखी हैकि ख...

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बात छोटी थी... | ग़ज़ल

बात छोटी थी, मगर हम अड़ गएसच कहें, लेने के देने पड़ गए
फूल थे, समझे कि हमसे बाग हैसूख कर पत्तों के जैसे झड़ गए
ले गए अपना हुनर बाज़ार मेंशर्म के मारे वहीं पर गड़ गए
फिर ग़जल ने कर दिया ख़ारिज हमेंफिर लगा गालों पे चांटे जड़ गए
जिन खयालों को उगलते ना बनापेट में करते वही गड़बड़ गए
दाद देते हैं,...

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मुहब्बत की जगह | ग़ज़ल

मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैंज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं
खरा हो या कि हो खोटा, खनक तो एक जैसी हैकिसी कासे में ये सिक्का चला कर देख लेते हैं
हमारी जीभ से अक्सर फिसलने को तरसता हैहै कितनी दूर का किस्सा, चला कर देख लेते हैं
तसल्ली हो गई हमको, यहां सब यार हैं अपनेइन्ही के...

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संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय