जीवन के नब्बे वर्ष पूरे हो रहे हैं आज जब मैं यह सोच रहा हूँ, तो ध्यान में राष्ट्रकवि स्व. श्री माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता 'पुष्प की अभिलाषा' की पक्तियां याद आ रही है।
चाह नहीं में सुरबाला के, गहनों में गुथा जाऊँ!चाह नहीं प्रेमी माला में, विंध, प्यारी को ललचाऊँ!! मुझे तोड़ लेना बनमाली, ...
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