सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 24

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निराला की शिक्षाप्रद कहानियां

'निराला की सीखभरी कहानियाँ' में सम्मिलित कई रचनाएं उनकी मौलिक न होकर उनके द्वारा एसोप फेबल्स की अनुदित कहानियाँ हैं। 'निराला' ने एसोप की कथाओं का सुन्दर ?...

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मरा हूँ हज़ार मरण

मरा हूँ हज़ार मरण 
पाई तब चरण-शरण। 
फैला जो तिमिर-जाल 

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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज,
तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन,
मैं हूँ केवल पतदल-आसन,

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निराला की ग़ज़लें

निराला का ग़ज़ल संग्रह - इन पृष्ठों में निराला की ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं। निराला ने विभिन्न विधाओं में साहित्य-सृजन किया है। यहाँ उनके ग़ज़ल सृजन क?...

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साही और साँप | शिक्षाप्रद कहानी

कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । एक साँप ने खुशामद पर आकर एक साही को अपने बिल में रहने की जगह दी । वह बिल एक छोटा-सा बिल था । उसमें घूमने-फिरने की काफी जगह न थी । स?...

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दो घड़े | शिक्षाप्रद

एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने ...

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महावीर और गाड़ीवान | Motivational

एक गाड़ीवान अपनी भरी गाड़ी लिए जा रहा था। गली में कीचड़ था। गाड़ी के पहिए एक खंदक में धँस गए। बैल पूरी ताकत लगाकर भी पहियों को निकाल न सके। बैलों को जुए से ?...

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शारदा और मोर

शारदा देवताओं की रानी थीं । वैसी रूपवती दूसरी देवी नहीं थी । उनकी प्यारी चिड़िया मोर था । खुशनुमा परों और भारी-भरकम आकार के कारण वह देवताओं की रानी सरस्वत...

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बदलीं जो उनकी आँखें

बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया ।
गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया ।
यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर

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किनारा वह हमसे

किनारा वह हमसे किये जा रहे हैं।
दिखाने को दर्शन दिये जा रहे हैं।
जुड़े थे सुहागिन के मोती के दाने,

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सौदागर और कप्तान | सीख भरी कहानी

एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्‍तान से पूछा, ''कैसी मौत से तुम्‍हारे बाप मरे?"
कप्‍तान ने कहा, ''जनाब, मेरे पिता, मेरे दादा और मेर?...

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भारति, जय विजय करे !

भारति, जय विजयकरे!
कनक-शस्य कमलधरे!
लंका पदतल शतदल

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दे, मैं करूँ वरण

दे, मैं करूँ वरण
जननि, दुःखहरण पद-राग-रंजित मरण ।
भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न हों;

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भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

वह आता --
दो टूक कलेजे के करता--
पछताता पथ पर आता।

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प्राप्ति | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब

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तोड़ती पत्थर | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

वह तोड़ती पत्‍थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्‍थर।

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बापू, तुम मुर्गी खाते यदि | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

बापू, तुम मुर्गी खाते यदि
तो क्या भजते होते तुमको
ऐरे-ग़ैरे नत्थू खैरे - ?

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ख़ून की होली जो खेली

रँग गये जैसे पलाश;
कुसुम किंशुक के, सुहाए,
कोकनद के पाए प्राण,

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वसन्त आया

सखि, वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।

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जूही की कली

[निराला की प्रथम काव्य कृति]
विजन-वन-वल्लरी पर
सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न--

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पद्मा और लिली | कहानी

'लिली' कहानी-संग्रह कथानक-साहित्य में निराला का प्रथम प्रयास था। निरालाजी ने इसकी भूमिका में लिखा है -"यह कथानक-सहित्य में मेरा पहला प्रयास है। मुझसे पहले...

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ध्वनि

अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-

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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,

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स्नेह-निर्झर बह गया है | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

स्नेह-निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,

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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जीवन परिचय