दे, मैं करूँ वरणजननि, दुःखहरण पद-राग-रंजित मरण ।
भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न हों;मार्ग के रोध विश्वास से भिन्न हों,आज्ञा, जननि, दिवस-निशि करूँ अनुसरण ।लांछना इंधन, हृदय-तल जले अनल,भक्ति-नत-नयन मैं चलूँ अविरत सबलपारकर जीवन-प्रलोभन समुपकरण ।
प्राण-संघान के सिन्धु के तीर मैं,गिनता रहूँगा न, क...
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