रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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विडम्बना

मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से
संस्कारों की घुट्टी पिलाई है ।
जिया हमेशा दिन-रात तुझको

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देसियों के विदेशी बुखार

जैसे ही दिवाली आने वाली होती है सोशल मीडिया पर एक पोस्ट तैरने लगती है कि चीन की बनी इलेक्ट्रिक झालर मत खरीदो, अपने यहाँ के कुम्हारों के बने दीये खरीद कर दि?...

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अंतर्द्वंद्व

ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है?
जिंदगी तो जिंदगी है, इससे शिकायत क्यों है?
अधूरी चाहतों का तुझे दर्द क्यों है?

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यथार्थ

आँखें बरबस भर आती हैं,
जब मन भूत के गलियारों में विचरता है।
सोच उलझ जाती है रिश्तों के ताने-बाने में,

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आदिम स्वप्न

तुम मन में, तुम धड़कन में
जीवन के इक इक पल में
मोहपाश में बँधे तुम्हारे

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अर्थहीन

कटु वचनों से आहत कर
पींग प्रेम की अर्थहीन है।
प्रेम समर्पण का नाम दूजा है

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उपन्यास अरुणिमा के अंश

रीता कौशल के उपन्यास ‘अरुणिमा’ के अंश
उपन्यास: अरुणिमा
लेखिका: रीता कौशल

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रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय