निदा फ़ाज़ली साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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कभी कभी यूं भी हमने

कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है
मीरो ग़ालिब के शेरों ने किसका साथ निभाया है

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निदा फ़ाज़ली के दोहे

बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान ।
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।।
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार ।

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माँ | ग़ज़ल

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे

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अपना ग़म लेके | ग़ज़ल

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं

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घर से निकले ....

घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे
इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना

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दुख में नीर बहा देते थे

दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
नफ़रत चढ़ती आँधी जैसी प्यार उबलते चश्मों सा

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सफ़र में धूप तो होगी | ग़ज़ल

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

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निदा फ़ाज़ली का जीवन परिचय