गयाप्रसाद शुक्ल सनेही साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

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हम स्वेदश के प्राण

प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा,
हम स्वदेश के प्राण।
आँखों में प्रतिपल रहता है,

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सुभाषचन्द्र

तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया
कि शक्ति-भक्ति और अमरता का बर लिया ।
खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया,

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लड़कपन 

चित्त के चाव, चोचले मन के, 
वह बिगड़ना घड़ी घड़ी बन के। 
चैन था, नाम था न चिन्ता का, 

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दिन अच्छे आने वाले हैं

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,

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सदुपदेश | दोहे

बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥
निकले फिर पलटत नहीं, रहते अन्त पर्यन्त ।

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हिन्दी

अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!
सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी ।

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हैं खाने को कौन

कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को 
कुछ सोयें अधपेट तरस दाने-दाने को
कुछ तो लें अवतार स्वर्ग का सुख पाने को 

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स्वदेश | कविता

वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
जो जीवित जोश जगा न सका,

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गयाप्रसाद शुक्ल सनेही का जीवन परिचय