सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 13

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खड़ा हिमालय बता रहा है

खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल हो कर

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मुक्ता

ज़ंजीरों से चले बाँधने
आज़ादी की चाह।
घी से आग बुझाने की

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मंदिर-दीप

मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
जैसे चाहो, इसे जलाओ,
जैसे चाहो, इसे बुझायो,

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अगर कहीं मैं पैसा होता ?

पढ़े-लिखों से रखता नाता,
मैं मूर्खों के पास न जाता,
दुनिया के सब संकट खोता !

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तुलसीदास | सोहनलाल द्विवेदी की कविता

अकबर का है कहाँ आज मरकत सिंहासन?
भौम राज्य वह, उच्च भवन, चार, वंदीजन;
धूलि धूसरित ढूह खड़े हैं बनकर रजकण,

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बढ़े चलो! बढ़े चलो!

न हाथ एक शस्त्र हो
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न, नीर, वस्त्र हो,

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युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि

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कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है

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नववर्ष

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिये,
इस महा जागरण के युग में

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अकबर और तुलसीदास

अकबर और तुलसीदास,
दोनों ही प्रकट हुए एक समय,
एक देश,  कहता है इतिहास;

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जगमग जगमग

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग?

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वंदना के इन स्वरों में

वंदना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो।
वंदिनी माँ को न भूलो,
राग में जब मत्त झूलो,

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प्रार्थना

प्रभो,
न मुझे बनाओ हिमगिरि,
जिससे सिर पर इठलाऊँ। प्रभो, न मुझे बनाओ गंगा,

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सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi का जीवन परिचय