प्रेमचंद! तुम छिपे, किन्तु यह नहीं समय था--
प्रेमसूर्य का अभी कहाँ हा! हुआ उदय था।
उपन्सयास औ’ कथा-जगत तमपूर्ण निरन्तर--
दीप्यमान था अभी तुम्हारा ही कर पाकर।
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
प्रेमचंद
प्रेमचन्द | नज़्म
बनके टूटे दिलों की सदा प्रेमचन्द।
देश से कर गये है वफा प्रेमचन्द।
जब कि पूरी जवानी प' था साम्राज।
उस ज़माने के है रहनुमा प्रेमचन्द।
देखने में शिकस्ता-सा एक साज़ है।
साथ लाखों दुखे दिल की आवाज़ है।
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प्रेमचंद
आज हर्ष की बीन बजाओ
प्रेमचंद का दिवस मनाओ;
अश्रु नहीं, शत् पुष्प चढ़ाओ,
अमर यशस्वी कथाकार की
कृतियों पर सर्वस्व लुटाओ,
प्रेमचंद के आगे अपने
शीष झुकाओ!
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लो, देखो अपना चमत्कार !
अब तक भी हम हैं अस्त-व्यस्त
मुदित-मुख निगड़ित चरण-हस्त
उठ-उठकर भीतर से कण्ठों में
टकराता है हृदयोद्गार
आरती न सकते हैं उतार
युग को मुखरित करने वाले शब्दों के अनुपम शिल्पकार !
हे प्रेमचन्द
यह भूख-प्यास
सर्दी-गर्मी
अपमान-ग्लानि
नाना अभाव अभियोगों से यह नोक-झोंक
यह नाराजी
यह भोलापन
यह अपने को ठगने देना
यह गरजू होकर बाँह बेच देना सस्ते—
हे अग्रज, इनसे तुम भली-भाँति परिचित थे
मालूम तुम्हें था हम कैसे थोड़े में मुर्झा जाते हैं
खिल जाते हैं, थोड़े में ही
था पता तुम्हें, कितना दुर्वह होता अक्षम के लिए भार
हे अन्तर्यामी, हे कथाकार
गोबर महगू बलचनमा और चातुरी चमार
सब छीन ले रहे स्वाधिकार
आगे बढ़कर सब जूझ रहे
रहनुमा बन गये लाखों के
अपना त्रिशंकुपन छोड़ इन्हीं का साथ दे रहा मध्य वर्ग
तुम जला गये हो मशाल
बन गया आज वह ज्योति-स्तम्भ
कोने-कोने में बढ़ता ही जाता है किरनों का पसार
लो, देखो अपना चमत्कार !
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मानवता का दर्द लिखेंगे... | ग़ज़ल
मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे ।
हम अपने इस कालखण्ड का एक नया इतिहास लिखेंगे ।
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भावर्षि प्रेमचंद तुम्हें प्रणाम
मां आनंदी पिता अजायब,
धरा लमही की है! तुम्हें प्रणाम
जिसने जना 'मजदूर कलम का'
दिव्य देह, वह धरा-धाम
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मूल मंत्र | हास्य कविता
हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमें हर बिमारी स्वतंत्र है
दवा चलती रहे, बीमार चलता रहे-
यही मूल-मंत्र है।
फलवाले से कहा : "ऊपर से देखने में चिकना है
भगवान जाने रस कितना है।"
तो बोला: "गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है
कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो।
हम दोनों ने अपना-अपना कर्म किया
मैंने दिया और आपने लिया
अब फल अच्छा निकले या ख़राब
यह तो हरि-इच्छा है जनाब।"
डॉक्टर से कहा:"आँख है तो ज़िन्दगी है
एक गई दूसरी बची है।"
तो बोला:"लोग-बाग बिना बोर्ड पढ़े
चेम्बर में घुस आते हैं
शर्म नहीं आती
नाक वाले डॉक्टर को
आँख दिखाते हैं।"
दर्ज़ी से कहा:"कुर्ता पेट पर टाइट सिला है।"
तो बोला:"कपड़ा क्या आपको
प्रेज़ेंट में मिला है
पानी में डालते ही आधा रह गया
अब जैसा बना है ले जाइए
कुर्ते को पेट के लायक़ नहीं
पेट को कुर्ते के लायक़ बनाइए।"
पान वाले से कहा:"पाँच रुपये का पान
कहाँ जाएगा हिन्दुस्तान?"
तो बोला:"खा कर तो देखिए श्रीमान
आत्मा खिल जाएगी
हमारे पाँन की पीक
शहर के हर कोने में मिल जाएगी।"
किताब वाले से पूछा:"प्रेमचन्द का गोदान है?"
तो बोला: "गोदान!
यह नाम तो पहली बार सुना है श्रीमान
हम तो साहित्य का सम्मान कर रहे हैं!
सत्य कथाएं बेच कर
राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रहे हैं।
कैलेंडर वाले से पूछा: "हरिवंश राय बच्चन का चित्र है?"
तो बोला: "आपका टेस्ट भी विचित्र है
वर्तमान को
भूतकाल के कन्धे पर टांग रहे हैं
बेटे के ज़माने में
बाप का चित्र मांग रहे हैं।"
लेखक से कहा: "यार कुछ ऐसा लिखो
कि भीड़ से अलग दिखो।"
तो बोला: "जैसा बनता है लिख रहे हैं
यही क्या कम है
कि हमारे जासूसी उपन्यास
रामायण से ज्यादा बिक रहे हैं।"
दुकानदार से कहा: "यार ठीक से तौलो"
तो बोला: "तौलने के बारे में कुछ मत बोलो
ज़िन्दगी भर यही किया है
ग्राहक को तौल से ज्यादा दिया है
आप पहले हैं जो बोल रहे हैं
वर्ना कोई नहीं देखता
कि हम क्या तौल रहे हैं।"
नौकरानी से कहा:"एक तो बर्तन चुराती हो
उपर से आँख दिखाती हो।"
तो बोली:दिखा तो आप रहे हैं
बर्तन मलवाओ, न मलवाओ
चोरी का इल्ज़ाम मत लगाओ
हमें पता है
कि आप कितने बड़े है
आधे बर्तनो पर तो
पड़ौसियों के नाम पड़े है।"
बेटे से कहा:"बाल मत बढ़ाओ"
तो बोला:"पापाजी, आदर्श का पाठ मत पढ़ाओ
हम ज़माने के साथ चल रहे हैं
आपके बाल नहीं है न
इसलिए आप जल रहें हैं।"
बीबी से कहा:"पति हूँ, चपरासी नहीं।"
तो बोली:"पत्नी हूँ, दासी नहीं
बाहर की भगवान जाने
घर में मेरी चलेगी
चिराग़ लेकर ढूंढने से भी
ऐसी बीबी नहीं मिलेगी।"
बेटी से कहा:"इतनी रात को कहाँ जा रहीं हो?"
तो बोली:"टोको मत जाने दो
आपसे तो दामाद फँसा नहीं
मुझे ही फँसाने दो।"
पड़ौसी से कहा:"आपका बेटा लड़कियों को छेड़ता है।"
तो बोला:"बेटे का नहीं उम्र का दोष है
जैसा भी है अच्छा है
किसी ऐसे वैसे का नहीं
हमारा बच्चा है।"
लड़के वाले से कहा:"बेटी पढ़ी-लिखी और सुन्दर है।"
तो बोला:"हमारा बेटा कौन-सा बन्दर है
रंग थोड़ा पक्का है
फिर पढाई में क्या रक्खा है
अच्छे-अच्छे लोग
डिगरियाँ लटकाए घूम रहे हैं
भाई साहब!
अपुन तो ऐसी लड़की ढूंढ रहे हैं
जिसके बाप के पास पैसा हो
चेहरे का क्या है
चाहे जैसा हो।"
प्रोफ़ेसर से कहा:"जब देखो
कॉफी हाउस में नज़र आते हो
बच्चों को कब पढ़ाते हो?"
तो बोला:"साल में दो महीने इतवार के
तीन स्ट्राइक के
चार त्योहार के
बच्चे अपने आप पास हो जाते हैं
नकल मार के।"
सिपाही से कहा:"कानून को भी मानते हो
या केवल डंडा घुमाना जानते हो?"
तो बोला:"कानून की भाषा पढ़े-लिखे बोलते हैं
हम तो हर कानून को
डंडे से तोलते हैं
डंडा हाथ में है तो गुंड़ा साथ में है।"
नेता से कहा:"वोट लिया है
बदले में क्या दिया है?"
तो बोला:"हम नेता हैं
आगे रहते है
पीछे क्या हो रहा है
कैसे देख सकते हैं
हमने माना कि देश का हाल बुरा है
मगर हमारे बापू ने हमें सिखाया है
बुरा मत देखो
बुरा मत सुनो
बुरा मत बोलो।"
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प्रेमचंद पर दोहे
धनपत मुंशी प्रेम थे,सब उनके ही नाम।
सूर्य सत्य साहित्य के,लमही उनका धाम।
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