हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

Articles Under this Category

भारत-दर्शन संकलन - मानसप्रेमी ग्राओस और वैरागी

फडरिक सैमन ग्राओस (Frederic Salmon Growse) पुराने अंग्रेजी आई०सी०एस० थे। वे उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में कलेक्टर रह चुके थे। हिन्दी से उन्हें प्रेम था और रामचरितमानस का उन्होंने अंग्रेजी गद्य में अनुवाद किया था। यह किसी यूरोपीय भाषा में मानस का यह प्रथम अनुवाद था। जब वे मथुरा में जिला मजिस्ट्रेट थे, एक वैरागी साधु किसी घृणित अपराध में उनकी अदालत में पेश किया गया। पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया तो ग्राओस साहब ने उसे अपनी सफाई पेश करने के लिए कहा। खाखी सम्प्रदाय के वैरागी साधु मानस का पाठ प्रायः करते हैं। अपराधी साधु जानता था कि उसने अपराध किया है और अपने बचाव के लिए उसके पास कोई तर्क नहीं है, इसलिए उसने अदालत में कहा-
...

लोहड़ी का ऐतिहासिक संदर्भ - रोहित कुमार 'हैप्पी'

किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है। उसने दोनों लड़कियों, 'सुंदरी एवं मुंदरी' को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।
...

कबूतर का घोंसला - अजीत मधुकर

कबूतर के अतिरिक प्रत्येक पक्षी का घोंसला होता है, जिसको वास्तव में घोंसला कहा जा सकता है । किन्तु कबूतर का घोंसला हमेशा बेढंगे तरीके से बना होता है, जिसमें से कभी भी अंडे गिर सकते हैं।
...

लोहड़ी लोक-गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी'

लोहड़ी पर अनेक लोक-गीतों के गायन का प्रचलन है।
...

अधूरी कहानी - कुमारी राजरानी

मैं भला क्यों उसे इतना प्यार करती थी ? उसके नाममात्र से सारे शरीर में विचित्र कँपकँपी फैल जाती थी। उसकी प्रशंसा सुनते ही मेरी आँखें चमक जाती थीं। उसकी निन्दा सुनकर मेरा मन भारी हो उठता था। पर मैं उसके निन्दकों का खण्डन नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसके पक्ष समर्थन के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं थे। बस, अपनी विवशता पर गुस्सा आता था। और यदि मेरे पास पर्याप्त शब्द होते भी, तो मैं किस नाते उसके निन्दकों का मुँह बन्द करती?  वह मेरा कौन था और मैं उसकी क्या लगती थी!
...

सुनहरा अखरोट | अफ्रीकी लोक-कथा - हंसराज रहबर

बहुत दिनों की बात है। किसी गाँव में एक लोहार और उसकी पत्नी रहते थे। उन्हें धन-दौलत किसी चीज की कमी नहीं थी। दुख सिर्फ यह था कि इनके कोई सन्तान नहीं थी। एक रात लोहार की पत्नी ने सपना देखा। उसे एक घने जंगल में एक पेड़ दिखाई दिया। जिसकी टहनी फल के बोझ से झुकी हुई थी। इस टहनी पर एक बड़ा-सा सुनहरा अखरोट लटक रहा था।
...

गुमशुदा - जोगेंदर पाल

मैं खो गया हूँ।
...

बकरी - वि० स० खांडेकर

किसी पहाड़ी पर रास्ते के बीच में ही एक गड्ढा था। पहाड़ी पर चारों तरफ हरियाली और झाड़-झंखाड थे। वहाँ चरने वाली बकरियों को भला वह गड्ढा कहाँ से दिखाई पड़ता!
...

कर्तव्य-निष्ठा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

अचानक आधी रात के समय कुछ लोगों ने विलियम कार्टराइट की मिल पर धावा बोल दिया। यह मशीन-युग के शुरुआत की बात है। उस काल में ऐसी घटनाएँ अकसर होती रहती थीं। मशीन ने शरीर-श्रम की जीविका छीन ली थी। यह धावा भी इसी कारण हुआ था। धावा करने वाले भयानक शस्त्रों से सज्जित थे। उधर मिलवाले भी असावधान नहीं थे। उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। दोनों ओर से अनेक व्यक्ति घायल हुए।
...

पूर्ण विराम थोड़ी ना लगा - मंगला रामचंद्रन

ईरा लाइब्रेरी में किताबों से कुछ नोट्स ले रही थी। अरूणा उसे ढूंढती हुई वहाँ पहुंच ग‌ई और हँसते हुए बोली—" ईरा, सारे दिन किताबों की खूशबू में डूबी रहती है कभी इनसे जी नहीं भरता?"
...

ज़ालिम भूख - खेमराज श्रीबंधु आदर्श

सूरज की प्रथम किरण के साथ चिड़िया चहचहाने लगी थी। परिंदे अपने घोसलों को छोड़कर वन की ओर निकल पड़े थे, किंतु सेठ धनपत की नींद, शायद अभी तक पूरी नहीं हुई थी। फिर भी वे अपनी खुली तोंद पर हाथ फेरते हुए, बंगले के सामने पार्क में टहल रहे थे। इसमें उनका शेरू भी उनका पूर्ण ईमानदारी से साथ दे रहा था। बीच-बीच में वे बड़े प्यार से अपने शेरू के कानों में उंगलियॉं चलाने में पीछे नहीं रहते। शायद, उनको ऐसा करने में एक असीम आनंद प्राप्त हो रहा था। स्वाभाविक भी है कि उनके अंदर से एक आत्मविश्वास की आवाज निकल रही थी। वे मन ही मन कहते,"मेरी सम्पूर्ण करोडों की सम्पति का रक्षक, तो यह एक वफ़ादार कुत्ता शेरू ही तो है। जो सुबह से शाम तक किसी को बगंले के आस-पास फटकने नहीं देता। किसी की मजाल है, जो उसके सामने आ जाए! 'भौं-भौं'करके, जैसे कानों के पर्दे फाड़ देता।"
...

तमाशा    - नफे सिंह कादयान

जून के अन्तिम पखवाड़े में सूर्य अपनी प्रचण्ड अग्नि शिखाओं से धरती झुलसाने लगा। वर्षा हुई तो लोगों को गर्मी से कुछ राहत मिली मगर बादलों ने जैसे ही आसमाँ से विदाई ली तेज धूप ने भीगी धरती को उबाल दिया। अब उमसी गर्मी में लोगों के शरीर पसीने से तर होने लगे। शाम के चार बजे अम्बाला शहर अलसाया हुआ सा चल रहा था। कमली इस शहर में आज आखिरी तमाशा दिखाने वाली थी। आज वह तीन बार करतब दिखा बुरी तरह थक चुकी थी। उसने शहर की बस्ती में एक व्यस्त सा चौक देख कर अपने बापू से रिक्शा रोकने को कहा।
...

चिरसंचित प्रतिकार - डॉ. आरती ‘लोकेश’

“गिरिजा! आपके बच्चों की स्कूल फीस कितनी जाती है?” अपनी कम्पनी के नए नियुक्त मानव संसाधन अफसर जयंत समदर्शानी का यह प्रश्न मुझे अवाक् कर गया।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश