हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
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जाग तुझको दूर जाना - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना।
जाग तुझको दूर जाना!
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बादल-राग - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

झूम-झूम मृदु गरज गरज घन घोर!
राग-अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झर झर झर निर्झर गिरि-सर में,
घर, मरु तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
मन में, विजन गहन कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
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लाल देह लाल रंग, रंग लियो बजरंग - आराधना झा श्रीवास्तव

बानर मैं मूढ़मति, दोसर न मोर गति।
दया करो सीतापति, नयन तरसते ।।१।।
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मैं आत्मलीन हूँ - लक्ष्मीकांत वर्मा

मैं आत्मलीन हूँ
रहूँगा आत्मलीन
बन नही सकता आवाज़ मैं किराये की
नहीं हूँ भोपू, प्रतिध्वनि किसी विज्ञापन की
इश्तहार की कोर पर छपी हुई तसवीर नहीं हूँ मैं
नहीं हूँ वह डुप्लीकेटर
जो छाती पर वज्र रख
अनुकृति की मशीन सा रेता जाये
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