संसार पूजता जिन्हें तिलक,
 रोली, फूलों के हारों से,
 मैं उन्हें पूजता आया हूँ
 बापू ! अब तक अंगारों से।
 
 अंगार, विभूषण यह उनका
 विद्युत पीकर जो आते हैं,
 ऊँघती शिखाओं की लौ में
 चेतना नयी भर जाते हैं।
 
 उनका किरीट, जो कुहा-भंग
 करके प्रचण्ड हुंकारों से,
 रोशनी छिटकती है जग में
 जिनके शोणित की धारों से।
 
 झेलते वह्नि के वारों को
 जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर,
 सहते ही नहीं, दिया करते
 विष का प्रचण्ड विष से उत्तर।
 
 अंगार हार उनका, जिनकी
 सुन हाँक समय रुक जाता है,
 आदेश जिधर का देते हैं,
 इतिहास उधर झुक जाता है।
-रामधारीसिंह दिनकर