कुछ सप्ताह पूर्व का शुक्रवार, 24 जून 2022, यूनाइटेड स्टेट्स ऑव अमेरिका के इतिहास में दर्ज होने वाली एक महत्वपूर्ण तारीख़!! ये वो दिन है जब दुनिया के महाशक्तिशाली देश अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ की महिलाओं से गर्भपात का संवैधानिक अधिकार यह कहकर छीन लिया कि इस बारे में यहाँ का संविधान साफ़ साफ़ कुछ नहीं कहता। बात सही भी है 1787 मैं लिखे गए इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में गर्भपात ही नहीं, बल्कि बहुत से आधुनिक विषयों पर कुछ नहीं लिखा गया होगा। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि पिछले पाँच दशकों से ये अधिकार अमरीकी महिलाओं को बाइज़्ज़त मिला हुआ था और इसे 24 जून 2022 को अचानक से उलट दिया गया। नहीं, नहीं, अचानक से नहीं, बहुत सालों की मेहनत मशक़्क़त का परिणाम है ये नया निर्माण। ये सब कैसे हुआ इसकी जानकारी के लिए चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं।
आज से तक़रीबन पचास साल पुरानी बात है जब 1969 में जेन रो नामक टैक्सास में रहने वाली महिला ने, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में, डिस्ट्रिक्ट अटोर्नी हेनरी वेड के ख़िलाफ़ ये कहकर मुक़दमा दायर किया (Roe v. Wade) कि टैक्सास राज्य में गर्भपात नहीं होने देने का क़ानून असंवैधानिक है। उस समय सुप्रीम कोर्ट के 9 में से 7 जजों ने जेन रो के पक्ष में निर्णय लिया और 22 जनवरी 1973 को, गर्भपात महिलाओं का संवैधानिक अधिकार निर्धारित हुआ। साफ़ दिखाई देता है कि 1973 में रहे सुप्रीम कोर्ट के जज, महिलाओं के अधिकारों के प्रति 2022 से ज़्यादा सजग थे। तो क्या ये मान लिया जाए कि अमेरिका रूढ़िवादिता और लैंगिक असमानता की तरफ़ बढ़ रहा है? हो भी सकता है और नहीं भी। इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए फिर से कुछ बिंदुओं की तरफ़ ध्यान देना होगा।
पहला बिन्दु यह कि अमेरिका में गर्भपात का मुद्दा भारत के बेटी बचाओ अभियान की तरह नहीं है। यहाँ गर्भपात बेटों की चाहत और बेटियों को बोझ समझकर नहीं होते बल्कि ये लड़ाई प्रो लाइफ़ और प्रो चोइस वालों के बीच की है, मतलब कि माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे की ज़िंदगी का अधिकार वर्सेज़ महिलाओं का मातृत्व को चुनने या नहीं चुनने की स्वतंत्रता का अधिकार। 1973 से लेकर 2022 तक यानी कि पिछले सप्ताह तक प्रो लाइफ़ वाले किसी न किसी रूप में अपना आक्रोश दिखाने और अपनी बातें मनवाने की कोशिश में लगातार प्रयासरत थे। इसके लिए आवश्यकता सिर्फ़ इस बात की थी कि सुप्रीम कोर्ट के 9 में से कम से कम 5 जज ऐसे हों जो प्रो लाइफ़ या बहुत हद तक कहिए कि धार्मिक या रूढ़िवादी मानसिकता के पक्षधर हो। राष्ट्रपति ट्रम्प के शासन काल में इस आवश्यकता की पूर्ति होने के साथ ही प्रो चोइस वालों के सिर पर इस क़ानून के रद्द होने का ख़तरा मंडराने लगा और वैसा ही हुआ भी।
इस मामले का दूसरा बिन्दु ये है कि सुप्रीम कोर्ट के गर्भपात को असंवैधानिक बताने या संवैधानिक अधिकार नहीं देने का मतलब यह कदापि नहीं कि पूरे देश में गर्भपात को क़ानूनन अपराध घोषित कर दिया गया है। इसका मतलब सिर्फ़ यह है कि 1973 से पहले की तरह एक बार फिर से ये निर्णय अमेरिका के राज्यों पर छोड़ दिया गया है। अब हर राज्य अपनी जनता के बहुमत के हिसाब से गर्भपात पर क़ानून बना सकता है और वह क़ानून उस राज्य में ही सीमित और मान्य होगा। ज़ाहिर है कि अमेरिका के कुल 50 राज्यों में से कुछ राज्य जहाँ प्रो चोइस वालों की बहुलता है और डेमोक्रेटिक पार्टी का शासन है वहाँ गर्भपात को पूर्णरूपेण महिलाओं के अधिकारों में शामिल किया जाएगा और उसी हिसाब से सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँगी। दूसरी तरफ़ जहाँ प्रो लाइफ़ वालों की बहुलता और रिपब्लिकन पार्टी का दबदबा है वहाँ बहुत सम्भव है कि गर्भपात को एक अपराध के रूप में देखा जाए और गर्भपात की सभी मेडिकल सुविधाएँ बंद कर दी जाएँ। हाँ, कुछ राज्य ऐसे भी रहेंगे जहाँ दोनो तरह की मान्यताओं वाले बराबर सी मात्रा में रहते हैं वहाँ पार्टी कोई भी हो, जनता को ख़ुश करने के लिए कुछ परिस्थितियों में गर्भपात जायज़ और कुछ में नाजायज़ क़रार दिया जाएगा। भैया, अगली बार के चुनाव में जीतना भी तो है।
अब तीसरा बिन्दु इस सवाल पर अटका है कि क्या ये नया क़ानून फिर से उलट कर सीधा नहीं किया जा सकता? क्यों नहीं? भाई, देश में लोकतंत्र है, तानाशाही नहीं। इस देश की जनता अगर चाहे तो एक बार फिर से रो वी वेड को उलट कर सीधा कर सकती है। ज़रूरत है उन्हीं हालातों को फिर से पैदा करने की जिसमें 9 में से कम से कम 5 जज, महिलाओं एवं लैंगिक समानता के अधिकारों के प्रति जागरूक और धर्म को राजनीति से अलग रखने के पक्षधर हों। ये सब कैसे होना चाहिए और कैसे हो सकता है ये सभी को मालूम है।
-विनीता तिवारी, अमेरिका